कपालभाति वास्तव में प्राणायाम का ही एक अंग है। परंतु कुछ योगियों ने इसे क्रिया को षटकर्म का भी अंग माना है। कपालभाति के अभ्यास से धारणा शक्ति का विकास होता है और कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है। इससे मन प्रसन्न और शांत रहता है तथा व्यक्ति में धार्मिक ज्ञान की वृद्धि होती है। कपालभाति और भस्त्रिका प्राणायाम में अधिक अंतर नहीं है। दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि कपालभांति में सांस छोड़ने की क्रिया तेज होती है जिससे पेट की वायु झटके के साथ बाहर निकलती है तथा पेट अपनी स्वभाविक अवस्था में धीरे-धीरे आता है। इस क्रिया से मस्तिष्क का अगला भाग साफ होता है और श्वसन क्रिया में सुधार होता है। इस क्रिया में सांस लेने व छोड़ने की क्रिया जल्दी-जल्दी की जाती है।
कपालभाति का अभ्यास स्वच्छ हवा वाले स्थान पर करें। अभ्यास के लिए पद्मासन में बैठकर सांस को नियंत्रित करें। अब सांस को अंदर खींचते हुए वायु को फेफड़ों में भर लें। जब पूर्ण रूप से वायु अंदर भर जाए तो आवाज के साथ तेज गति से नासिका छिद्र से सांस बाहर छोड़ें। सांस छोड़ते समय नासिका छिद्र (नाक के छेद) से आवाज आना चाहिए। सांस छोड़ते हुए बीच में बिल्कुल सांस न लें। फिर सांस लें और आवाज के साथ तेज गति से सांस बाहर छोड़ें। इस तरह इस क्रिया को 10 से 15 बार करें। इस क्रिया में सांस लेने व छोड़ने की गति को जितना तेजी से कर सकें उतना लाभकारी होता है। पहले 1 सैकेंड में एक बार सांस ले और छोड़ें और बाद में इस क्रिया को बढ़ाते हुए 1 सैकेंड में 2 से 3 बार सांस लेने व छोड़ने की कोशिश करें। इस तरह 1 मिनट में 100 से 120 बार सांस लेने व छोड़नें का अभ्यास करें। इस क्रिया में सांस लेने में जितना समय लगे, उसका आधा समय सांस छोड़ने में लगाना चाहिए।
विशेष :
इस क्रिया को करते समय मन को तनाव मुक्त रखें और अच्छे विचारों के साथ इसका अभ्यास करें। शुरू-शुरू में कपालभाति का अभ्यास 3 से 5 मिनट तक करें। इसके अभ्यास के क्रम में थकान अनुभव हो तो बीच में थोड़ा आराम कर लें। अभ्यास के क्रम में जुकाम होने से श्वास नलिका द्वारा कफ बार-बार बाहर आ रहा हो तो अभ्यास से पहले कपालभाति का अभ्यास करें। इससे नाक साफ हो जाएगी। इसके अभ्यास के लिए नाक को साफ करने के लिए सूत्रनेति या धौति क्रिया भी की जाती है, परंतु इसके लिए योग गुरू से सलाह लें।
सावधानी :
पीलिया या जिगर के रोगी को तथा हृदय रोग के रोगी को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। इस क्रिया को करने से हृदय पर दबाव व झटका पड़ता है, जो व्यक्ति के लिए हानिकारक होता है। गर्मी के दिनों में पित्त प्रकृति वाले इसे 2 मिनट तक ही करें। इस क्रिया के समय कमर दर्द का अनुभव हो सकता है, परंतु धीरे-धीरे वह खत्म हो जाएगा।
क्रिया से रोगों में लाभ :
इस प्राणायाम से आध्यात्मिक लाभ अधिक मिलता है और मन में धारणा शक्ति की वृद्धि होती है। इस क्रिया को करने से सिरदर्द , सांस की बीमारी तथा मानसिक तनाव दूर होता है। इससे मन शांत, प्रसन्न और स्थिर होता है और यह मन से बुरे विचारों को नष्ट करता है, जिससे डिप्रेशन आदि रोगों से छुटकारा मिल जाता है। इस क्रिया से कफ का नाश होता है। इसके अभ्यास से फेफड़ों की कोशिकाओं की शुद्धि होती है और फेफड़े मजबूत होकर उनके रोग दूर होते हैं। यह सुषुम्ना, मस्तिष्क साफ करता है और चेहरे पर चमक, तेज, आभा व सौन्दर्य बढ़ाता है। यह आमाशय को साफ करके पाचनशक्ति को बढ़ाता है, जिससे आंतों की कमजोरी दूर होती है। यह पेट के सभी रोगों को दूर करता है तथा पेट की अधिक चर्बी को कम कर मोटापे को घटाता है। यह अजीर्ण , पित्त वृद्धि, पुराना बलगम, कृमि आदि को खत्म करता है। इसके अलावा यह रक्त विकार , आमवात (गठिया) विष विकार, त्वचा आदि रोगों को दूर करता है।
इसको करने से दमा, श्वास, एलर्जी , मधुमेह, गैस, कब्ज , अम्लपित्त, किडनी तथा प्रोस्टेट संबन्धी सभी रोग खत्म होते हैं। सर्दी के मौसम में इसका अभ्यास करने से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। इस प्राणायाम से हृदय की शिराओं में आई रुकावट दूर हो जाती हैं। इस प्राणायाम से गले के ऊपर के सभी रोग जैसे सिरदर्द, अनिद्रा , अतिनिद्रा, बालों का झड़ना व पकना, नाक के अंदर फोड़े और बढ़ा मांस, नजला, जुकाम, आंखों के विकार , कम सुनना, मिर्गी आदि रोग दूर होते हैं।
योग ग्रन्थ में कपालभांति प्राणायाम के अभ्यास को अन्य 4 प्रकार से करने की विधि बताई गई है- 1. बाहरी प्राणायाम 2. वात्क्रम क्रिया 3. व्युत्क्रम क्रिया 4. शीमक्रम क्रिया।
बाहरी प्राणायाम :
इस क्रिया में सिद्धासन या पद्मासन में बैठ जाएं। फिर पूर्ण शक्ति के साथ सांस को बाहर छोड़ दें। इसके बाद अपने सिर को आगे की ओर झुकाकर ठोड़ी को कंठ में सटाकर रखें और कंधों को ऊपर की ओर भींचकर आगे की ओर करें। फिर मूलबंध करें और उसके बाद उड्डीयान बंध लगाएं। इस स्थिति में तब तक रहें, जब तक आप सांस को बाहर रोक सकें। जब सांस रोकना सम्भव न हो तो तीनों बंध को हटाते हुए सिर को ऊपर उठाकर धीरे-धीरे सांस लें। सांस लेकर पुन: सांस बाहर छोड़ दें और सांस को बाहर ही रोककर पहले की तरह ही तीनों बंधों को लगाकर रखें। इस तरह इस क्रिया को 3 बार करें और धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाते हुए 21 बार तक इसका अभ्यास करें।
रोगों में लाभ :
इस प्राणायाम से मन की चंचलता दूर होती है और जठराग्नि प्रदीप्त होती है। यह पेट के सभी रोगों को दूर करता है। इससे बुद्धि सूक्ष्म और तेज होती है। यह वीर्य को ऊर्ध्वगति (ऊपर की ओर) करके स्वप्नदोष, शीघ्रपतन , धातुविकार आदि को खत्म करता है। कपालभाति प्राणायाम करने से पेट की सभी मांसपेशियों की मालिश हो जाती है। इसके प्रारम्भिक अभ्यास के क्रम में पेट के कमजोर भाग में हल्के दर्द का अनुभव होता है। दर्द के समय आराम करना चाहिए तथा रोगों को खत्म करने के लिए सावधानी से यह प्राणायाम करना चाहिए।
वात्क्रम की विधि :
इस क्रिया को सुखासन में बैठकर करना चाहिए। सुखासन में बैठने के बाद शरीर को सीधा करते हुए आंखों को बंद करके रखें। दाहिने हाथ के अंगूठे को नाक के दाईं ओर रखें और अन्य सारी अंगुलियों को बाईं ओर रखें। फिर शरीर को हल्का करते हुए नाक के दाएं छिद्र को बंद करके बाएं छिद्र से सांस खींचें और बाएं छिद्र को बंद कर दाएं छिद्र से सांस छोड़ें। फिर दाएं छिद्र से सांस लें और दाएं छिद्र को बंद कर बाएं से सांस को छोड़ें। इस तरह इस क्रिया को 3 से 5 मिनट तक करें। यहां सांस लेने व छोड़ने की क्रिया सामान्य रूप से करनी चाहिए। इस अभ्यास के द्वारा बलगम संबंधी सभी विकार व रोग दूर हो जाते हैं।
व्युत्क्रम क्रिया की विधि :
इस क्रिया में पहले की तरह ही बैठें और शरीर को तान कर रखें। अपने पास किसी बर्तन में पानी भरकर रखें। फिर पानी को अंजुली में डालकर सिर को हल्का नीचे झुकाकर नाक के दोनों छिद्रों से पानी को अंदर खींचें। यह पानी नाक के रास्ते धीरे-धीरे मुंह में आ जाएगा। इसे बाहर निकाल दें। इस क्रिया का अभ्यास सावधानी से करें, क्योंकि असावधानी से पानी मस्तिष्क में जाने पर अधिक हानि पहुंचा सकता है। यह क्रिया नाक के मार्ग व गुह्य से श्लेष्मा को निकालकर नाक के गुहा को साफ व स्वच्छ बनाता है।
शीमक्रम की विधि :
इस क्रिया में भी बैठने की मुद्रा पहले की तरह ही बनाएं रखें और मुंह से आवाज के साथ पानी को मुंह में चूसें। फिर पानी को नाक के रास्ते आवाज के साथ छींकने के साथ नाक से बाहर निकाल दें। यह अभ्यास शरीर की प्रतिरक्षा की क्षमता को बढ़ाता है तथा बलगम संबंधी सभी समस्याओं को दूर करता है।
सावधानी :
यह 4 विधियां अत्यंत कठिन क्रिया है। इसलिए इसका अभ्यास सावधानी से करें तथा किसी योग शिक्षक की देख-रेख में करें। गीली विधि द्वारा कपालभाति प्राणायाम का अभ्यास करते समय अचानक आई परेशानी का मुकाबला करने के लिए फेफड़ों में भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन होनी चाहिए। ताकि पानी अंदर खींचते हुए वायु मार्ग में चला जाए तो उसे आसानी से निकाल सकें।
विशेष :
कपालभांति की ´सूखी´ और ´गीली´ विधि द्वारा मस्तिष्क गुहारों की शुद्धि होती है। इस अभ्यास से रोगों को रोकने की क्षमता को बढ़ाया जाता है। सूखा या वायु प्राणायाम, प्राणायामों के अभ्यासों के आधार का कार्य करता है। यह नाड़ियों को साफ करके पूरे शरीर को शुद्ध बनाता है।