एक बार यूज़ करने के बाद फिर यूज़ नहीं करनी चाहिए प्लास्टिक की बोतल, वजह है ये घातक वैज्ञानिक कारण


हम सभी अकसर उपयोग में आ चुकी बोतलों को दोबारा यूज़ करने से नहीं चूकते, वो भी बिना ये सोचे-समझे कि इसके कई सारे साइड इफ़ेक्ट्स भी हो सकते हैं. दरअसल, दुनिया में कई तरह का प्लास्टिक बनाया जाता है, जिससे कई तरह के ख़तरनाक पदार्थ भी विसर्जित होते हैं. प्लास्टिक की हर बोतल हानिकारक हो, ये ज़रूरी नहीं. ये जानने के लिए बोतल के नीचे छपे हुए इन Signs से ये पता लगाया जा सकता है कि ये बोतल हानिकारक है या नहीं:

बोतलों में पनपते हैं सबसे ज़्यादा बैक्टीरिया :
1 or PET or PETE - इसे सिर्फ़ एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता है.
3 or 7 or PVC and PC - इससे ज़हरीले पदार्थ विसर्जित होते हैं.
2 or 4 or 5 and PP - इसे कई तरह से उपयोग में लाया जा सकता है.

इसके साथ ही प्लास्टिक की बोतलों से कई तरह के बैक्टीरिया भी उत्पन्न होते हैं :
वैज्ञानिक प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने को पेट्स के खाने के बर्तन में पानी पीने के बराबर मानते हैं. उनके हिसाब से प्लास्टिक की बोतल में उससे भी ज़्यादा जीवाणु पाए जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि प्लास्टिक की बोतल में हर दिन बैक्टीरिया की वृद्धि होती है, इससे बचने के लिए बोतल को साबुन और गर्म पानी से अच्छे से धोकर ही इस्तेमाल करना चाहिए.

प्लास्टिक बोतल की नेक पर सबसे ज़्यादा बैक्टेरिया पाए जाते हैं, जिन्हें हम पानी पीते वक़्त निगल जाते हैं. इसलिए बेहतर होगा कि बोतल में स्ट्रॉ डालकर पानी पीएं और नियमित रूप से उसकी सफ़ाई करें.


जानिए प्लास्टिक में मौजूद जानलेवा रसायन के बारे में :
हमारे शरीर के अंतर अंत:स्रावी ग्रंथियां होती हैं जो हमारे शरीर की सभी जरूरी क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करती हैं। जबकि प्लास्टिक बोतल, खाना पैक करने वाले डिब्बों, डिटरजेंट, खिलौनों और सौंदर्य प्रसाधन आदि में एक ऐसा खतरनाक रसायन पाया जाता है जो इन ग्रंथियों को निष्क्रिय करता जाता है। इस जानलेवा रसायन को बिना किसी उपकरण की मदद के देख पाना मुश्किल है। 
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ईडीसी के खतरे :
वैज्ञानिकों के मुताबिक प्लास्टिक बोतल में इंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल (ईडीसी) जैसा रसायन होता है जो शरीर के हार्मोनल सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं। मुख्य शोधकर्ता व प्रोफेसर लियोनार्डो ट्रासेंडे के मुताबिक, प्लास्टिक के बोतल में पाया जाने वाला रसायन ईडीसी स्वास्थ्य के लिए जानलेवा है। इससे होने वाली बीमारियों से बचाव में सिर्फ अमेरिका में हर साल 2300 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होते हैं।


इससे स्नायुतंत्र संबंधी बीमारियों सहित एकाग्रता में परेशानी, सोचने-समझने की क्षमता का भी कमी आना, दिमागी असंतुलन, ऑटिज्म, कैंसर, मोटापा, डायबिटीज, पुरुषों में बांझपन और महिलाओं में गर्भाशय संबंधी बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है।  

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