फाइलेरिया एक परजीवी रोग हैं जो रक्त-आहार प्राप्त करने वाले संधिप्राद (आर्थ्रोपोड्स) द्वारा फैलता हैं, जिनमें प्रमुख रूप से काली मक्खियां और मच्छर शामिल होते हैं। आठ अलग-अलग प्रकार के सूत्रकृमि होते हैं जिनके कारण फाइलेरिया होता हैं। फाइलेरिया के अधिकतर मामले वुकेरिआ बैंक्रॉफ्टी के रूप में जाने जाने वाले परजीवी के कारण होते हैं। कीड़े किस क्षेत्र को प्रभावित करते हैं, उस के आधार पर फाइलेरिया को वर्गीकृत किया जाता हैं -
- लिम्फेटिक कीड़े (एलीफांटिसिस) - जो लसीका ग्रंथि सहित लसीका प्रणाली को भी प्रभावित करते हैं।
- त्वचा के नीचे फाइलेरिया - जो त्वचा के नीचे की परत को प्रभावित करते हैं।
- लसी गुहा फाइलेरिया - जो पेट की लसी गुहा को प्रभावित करते हैं।
फाइलेरिया कोई प्राण-घातक संक्रमण नहीं हैं, लेकिन यह लसीका तंत्र को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता हैं। प्रारंभिक अवस्था में रोग के कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ते। इसलिए, ज्यादातर लोगों को शुरू में पता नहीं चलता कि उन्हें फाइलेरिया हो गया हैं। त्वचा और उसके भीतर टिश्यु या ऊतकों के मोटा हो जाना फाइलेरिया के प्रमुख लक्षण हैं।
फाइलेरिया का निदान आमतौर पर रात के समय रक्त या त्वचा के नमूने पर परजीवी के प्रत्यक्ष दिखाई देने से किया जाता हैं। जबकि डाइथाइलकार्बामाजीन (डीईसी) जैसी दवाएं फाइलेरिया के उपचार के लिए उपलब्ध हैं, किसी व्यक्ति के पैरों में सूजन और भद्दा दिखना प्रमुख रूप से ध्यान देने योग्य लक्षण हैं। इसलिए, मच्छरों को दूर भगाने वाली क्रीम, मैट्स, कॉइल, एअरोसोल्स का प्रयोग कर फाइलेरिया के फैलने से बचना चाहिए और स्वच्छता और सफाई के बेहतर अभ्यास अपनाकर मच्छरों के प्रजनन को रोकना सबसे बेहतर उपाय हैं।
लिम्फेटिक फाइलेरिया (हाथीपांव/एलिफांटिसीस) के लक्षण
हाथीपांव के प्रमुख लक्षण त्वचा और उसके भीतर निहित ऊतकों का मोटा हो जाने के साथ सूजन/एडीमा हैं। यह आम तौर पर निचले हिस्सों को प्रभावित करता हैं। हालांकि हाथ, योनि, स्तन और अंडकोष (जिसके कारण उसमें लसीले तरल प्रदार्थ एकत्रित हो जाते हैं) भी इसके कारण प्रभावित हो सकते हैं।
हाथीपांव की अवस्था में एडीमा, स्तन या जननांग क्षेत्र में अपने सामान्य आकार से कहीं अधिक बढ़ जाता हैं और इसके कारण लसीका प्रणाली की रक्त वाहिकाओं में भी अवरोध उत्पन्न हो सकता हैं।
त्वचा के नीचे फाइलेरिया के लक्षण-
- त्वचा के नीचे फाइलेरिया के लक्षणों में निम्न शामिल हैंः
- त्वचा पर चकत्ते पड़ जाना
- हाइपर या हाइपो पिगमेंट उपरंजकता (मैक्यूलस)
- नदी का अंधापन (ऑन्कोसेर्का वोल्वूलस के कारण)
सीरस फाइलेरिया के लक्षण-
- लसी (सीरस) फाइलेरिया के लक्षणों में निम्न शामिल हैंः
- पेट में दर्द
- त्वचा के चकत्ते
- गठिया
- हाइपर या हाइपो पिगमेंट मैक्यूलस
फ़ाइलेरिया कैसे फैलता है
यह रोग मच्छरों के काटने से फैलता है एक वयस्क कृमि लाखों की संख्या में छोटी-छोटी कृमि पैदा करती है यह कृमि संक्रमित मनुष्य के रक्त में रहती है इस कृमि को मच्छर एक संक्रमित मनुष्य का खून चूस कर दुसरे स्वस्थ मनुष्य तक पहुंचाते हैं.
आप फाइलेरिया का उपचार कैसे करते हैं?
डायथाइल्कार्बामाजीन (डीईसी) फाइलेरिया के उपचार की अनुशंसित दवा हैं। यह माईक्रोफिलेरिया को मारता हैं, पर व्यस्क कीड़े पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता। इस प्रकार यह केवल एक व्यक्ति से दूसरे में संक्रमण फैलने से रोककर संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद करता हैं। इससे कुछ व्यक्तियों में प्रतिक्रिया हो सकती हैं। कुछ रोगियों में इवरमैक्टिन या एल्बेन्डजोल भी उपयोगी हो सकते हैं।
रोगग्रस्त हिस्से की अच्छी साफ सफाई और स्वच्छता बनाए रखकर लिम्फेडीमा और त्वचा में द्वितीयक बैक्टीरिया संक्रमण के बिगड़ने से बचा जा सकता हैं। प्रभावित अंग को ऊंचा उठाकर रखा जाना चाहिए और लिम्फ प्रवाह को बेहतर बनाने के लिए नियमित व्यायाम किया जाना चाहिए।
पैरों की सूजन एक व्यक्ति में साफ देखी जा सकती हैं और वह भद्दी भी लगती हैं। फाइलेरिया के उपचार के लिए दवाएं उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए फाइलेरिया में मच्छरों के काटने से बचना ही सबसे बेहतर उपाय हैं। एरोसोल का उपयोग, मच्छर नाशक क्रीम, मैट्स, कॉयल, नेट और स्वच्छता के बेहतर अभ्यास के साथ मच्छरों के प्रजनन की रोकथाम करके ही हम फिलेरिया को फैलने से रोकने में मदद कर सकते हैं।