मलेरिया से लेकर बवासीर का इलाज करता है नीम, जानिये नीम के अनसुने नुस्खे


नीम की बहुआयामी प्रकृति, इसके औषधीय उपयोगों और सारी दुनिया में लोगों के बीच इसके महत्त्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे ‘इक्कीसवीं शताब्दी का वृक्ष’ घोषित किया है। जहाँ एक ओर आयुर्वेद के नीम के औषधीय गुणों का बखान है वहीं आधुनिक विज्ञान भी सेहत, खेती-बाड़ी और पर्यावरण संबंधित समस्याओं के सफल निवारण के लिए नीम का सहारा लिए है। आदिवासी अंचलों में नीम को एक अतिमहत्वपूर्ण औषधीय वृक्ष के तौर पर देखते हैं, 

नीम के अचूक नुस्खे :

आदिवासियों के दैनिक जीवन में नीम एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आदिवासियों के अनुसार, नीम के पत्ते और मकोय के फ़लों का रस समान मात्रा में लेकर पलकों पर लगाने से आंखों का लालपन दूर हो जाता है।
जूएं दूर करें – नीम की निबौलियों को पीसकर रस तैयार कर लिया जाए और इसे बालों पर लगाया जाए तो जूएं मर जाते हैं।
त्वचा रोग में राहत पहुंचाए – गर्मियों में होने वाली घमौरियों से छुटकारा पाने के लिए नीम की छाल को घिसकर लेप तैयार कर लिया जाए और उन हिस्सों पर लगाया जाए जहाँ घमौरियां और फुंसिया हो, आराम मिल जाता है। पानी में थोड़ी सी नीम की पत्तियां डालकर नहाने से भी घमौरियां दूर हो जाती है।
गले का दर्द दूर करने का अचूक नुस्खा – गले की सूजन दूर करने के लिए पातालकोट के आदिवासी नीम की पत्तियां (५ ग्राम), ४ कालीमिर्च, २ लौंग और चुटकी भर नमक को मिलाकर काढ़ा बना लेते है और रोगी को दिन में तीन बार सेवन की सलाह देते हैं।
डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए अमृत समान – डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार नीम के गुलाबी कोमल पत्तों को चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग मे आराम मिलता है। कुछ आदिवासी नीम की पत्तियों के रस में दालचीनी का चूर्ण मिलाकर मधुमेह के रोगियों को देते हैं और उसके परिणाम भी काफ़ी चौंकाने वाले हैं हलाँकि इसके कोई भी क्लीनिकल और वैज्ञानिक प्रमाण अब तक देखने नहीं मिले, फिर भी इस पारंपरिक नुस्खे को आजमाने में कोई बुराई नहीं।
पुराने दाग-धब्बे कम करे – डाँग में आदिवासी लगभग 200 ग्राम नीम की पत्तियों को 2 लीटर पानी में उबालते हैं और जब पानी का रंग हरा हो जाता तब उस पानी को बोतल में छान कर रख लेते है। नहाने के वक्‍त बाल्टी में 75 से 100 मिलीलीटर इस नीम के पानी को डाल दिया जाता है। इन जानकारों के अनुसार नहाने का पानी संक्रमण, मुँहासे और शरीर से पुराने दाग- धब्बों से छुटकारा दिलाता है।
बवासीर में राहत – बुंदेलखंड में आदिवासी हर्बल जानकार बवासीर जैसे कष्टकारी रोग के इलाज के लिए नीम तथा कनेर के पत्ते की समान मात्रा लेकर प्रभावित अंग में लेप की सलाह देते हैं, इनका मानना है कि ये लेप लगातार एक हप्ते तक लगाने से कष्ट कम होता जाता है।
मलेरिया का इलाज – मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के कोरकु आदिवासी मलेरिया में नीम के तने की अन्दर की छाल को कूटकर कांसे के बर्तन में पानी के साथ कुछ देर के लिए खौलाते है और फिर इसे एक कपडे से छान लेते हैं। इन आदिवासियों के अनुसार इस पानी को यदि दिन में तीन बार मलेरिया से ग्रस्त रोगी को दिया जाए तो मलेरिया दूर हो जाता है।

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