नीम के चमत्कारिक फ़ायदे


नीम का वृक्ष अनेक औषधीय गुणों की खान है। नीम, हमारे शरीर, त्‍वचा और बालों के लिये बहुत फायदेमंद है।

नीम सर्व कीटनाशक, कीटमारनाशक और फफूंदनाशकों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

नीम को संस्कृत में ‘अरिष्ट’ भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है, ‘श्रेष्ठ, पूर्ण और कभी खराब न होने वाला।’



बालझड़
यदि किसी कारण सर झरने लगे, परन्तु अभी अवस्था बिगड़ी न हो तो नीम और बेरी के पत्तो को पानी में उबालकर बालो को धोना चाहिए। इससे झड़ना रुक जाता है, कालीमा कायम रहती है और थोड़े थोरे ही दिनों में बाल खूब लम्बे होने लगते है। इससे जुए भी मर जाती है।

नेत्र खुजली

पत्ते छाया में सुखा ले और किसी बर्तन में डाल कर जलाये। ज्योही पत्ते जल जाये, बर्तन का मुँह ढक दे। बर्तन ठण्डा होने पर पत्ते निकाल कर सुरमे तरह पीस ले। अब इस रख में नीबू का ताजा रास डालकर छह घंटे तक खरल करे और खुश्क शीशी में रखे। रोजाना प्रातः व सायं सलाई द्धारा सुरमे के सामान उपयोग करे

आँख का अंजन

नीम के फूल छाँव में खुश्क कर बराबर वजन कलमी शोर मिलाकर बारीक़ पीस ले और कपरछन करे। अनजान के रूप में रात्रि को सोते समय सलाई द्धारा उपयोग करे, नेत्र-ज्योति बढ़ता है।

कान बहना

नीम का तेल गर्म कर इसमे सोलहवाँ भाग माँ डाले, जब पिघल जाये तो आच पर से उतार कर इसमें आठवाँ भाग चूर्ण फिटकरी (खील) मिलाकर सुरक्षित रखे। यदि कान बहना बन्द न होता हो तो इस दवा को आवश्य आजमाए।

कान में घाव

यदि कान में घाव हो जाये तो बड़ी कठिनाई से ठीक होता है। लिए निम्न नुस्ख अत्यंत लाभप्रद सिद्ध हुआ है - नीम का रस तीन माशे, शुद्ध मधु मशो। दोनों मिश्रित करे, तथा थोड़ा गरम कर के मधु के 2-4 बूंद टपकाये। कुछ ही दिन में घाव ठीक होकर स्वस्थ लाभ होगा।

नजला - जुखाम - 

नीम के पत्ते एक टोला, काली मिर्च छह हसो- दोनों नीम के डंडे से कुटे और नीम के एक एक पत्ते से गोलिया बनाये। इस गोलिया को छाव में सुख कर सीसी में कर के रखना चाहिए। तीन-चार गोलिया प्रातः व सय कुनकुने पानी के साथ लेना चाहिए, नजला-जुखाम के लिए उत्तम है। नीम की निम्बैली एक तोला, लाहैरी नमक एक तोला, खिल फिटकरी एक तोला- तीनो बारीक़ से पीस कर मंजन रूप में दांत पर मलिये, दांत पीड़ा के लिए बिसेसकर लाभदायक है। दांत मोती के सामान चमक उठते है।

कै

दो तोले नीम के पत्ते आध पाव पानी में ठंडाई के समान घोट- छान कर रोगी को पिलाये। सभी प्रकार की कै रुक जाती है।

पुराने दस्त

नीम के बीज की गिरी एक माशा में थोड़ी चीनी मिलकर उपयोग करने से पुराने दस्त बंद होते है। आहार केवल चावल ही रखे।

बारी का ज्वर

नीम की भीतरी नरम छाल छाव में खुश्क कर बारीक़ पीस ले और एक एक माशा पानी के साथ दिन में तीन बार उपयोग करे। तीन दिन में ही दवा जादू का काम करती है तथा बारी का ज्वर फिर नही होता।

नीम के पंचांग जलाकर बत्तीस गुना पानी डालकर एक घड़े में रखे और नित्य हिलाते रहे। तीन दिन पशचात पानी निथार कर कपरछन करे और लोहे की कड़ाही में डालकर आँच पर रखे। जब सारा जल सुख जाये और नमक जैसा पदार्थ बाकि रह जाये (यह नीम का क्षर है ) तो इसे शीशी में सुरक्षित रख ले। 

मात्रा

आधी से एक रत्ती तक। सब प्रकार के ज्वर, विशेषकर मलेरिया की अचूक औषधि है दिन में तीन-चार बार उपयोग की जा सकती है।

ज्वर-तोड़

आधा छटांक नीम के हरे पत्ते और दो दाने काली मिर्च-दोनों आधा पाव पानी में घोटकर तथा चन कर पिने से बरी का ज्वर ठीक हो जाता है। यह एक अत्यंत भरोसे की दवा है।

नीम के ताजा पत्ते एक तोला, शवेत ओहितकारी छह माशो - दोनों बारीक़ पीस कर पानी द्वारा चने के बराबर गोलियाँ बना ले। नित्य तथा बरी से चढ़ने वाले सब प्रकार के ज्वर ठीक करने में चमत्कारी है।

पुराना ज्वर

इक्कीस नीम के पत्ते और इक्कीस डेन काली मिर्च - दोनों की मलमल के कपड़े में पोटली बाँधकर आधा सेर पानी में उबले। जब पानी चौथाई भाग रह जाये तो उतार कर ठण्डा होने दे। फिर प्रातः व सांय पिलाने से निशचय ही लाभ होगा।

तपेदिक का बढ़िया इलाज

छिलका नीम दो सेर, आवले की जड़ दो सेर, पुराना गुड़ चार सेर, हरड़, आँवला बहेड़ा प्रत्येक आधा सेर, सौफ आधा सेर और सोए आधा सेर और सोए आधा सेर - समस्त सामग्री मजबूत बर्तन में बन्द कर ग्रीष्म ऋतु में पांच शरद ऋतु में बारह दिन तक किसी गर्म स्थान पर - गेहूँ या भूसे में रखे। तत्पशचात दो बोतल अर्क निकले।

मात्रा

पहले दिन एक तोला, दूसरे दिन डेढ़ तोला तथा तत्पशचात दो तोला तक रोजाना गुलाब अर्क के साथ पिलाये। यह नुस्खा एक सन्यासी साधु से प्राप्त हुआ है।

गर्मी ज्वर

प्रायः ज्वरो में और विशेषकर गर्मी के ज्वर में प्यास बंद नही होती। ऐसी स्थिति में नीम की पतली टहनियाँ (पत्तो रहित) लेकर पानी में डाले और थोरे देर पसगचत यह पानी रोगी को पिलाये, तुरंत प्यास को आराम होगा, घबराहट दूर होगी और ज्वर में लाभ होगा।

पेट के कीड़े

दो तोले नीम की छाल एक सेर पानी में पकाये, चौथाई भाग पानी रहने पर मलकर छाने और प्रातः व सांय      पि लिया करे। इससे पेट कीड़े जाते है और फिर नही होते।

यदि पेट में कीड़े पड़ जाये तो नीम के पत्तो का रस दो-तीन दिन पिलाये, कीड़े मर कर निकल जायेगे। तत्पशचात दो-तीन दिन कलई का बुझा हुआ पानी पिलाये, दोबारा पेट में कीड़े नही पड़ेंगे।

बवासीर

नीम के बीज बीज गिरी तोला, धरेक के बीज की गिरी एक तोला, धरेक के बीज की गिरी एक तोला, रसौत एक तोला, हरड़ (गुठली रहित) तीन तोला - कूटकर कपरछन करे। छह-छह माशा प्रातः व सांय ठण्डे दूध या पानी के साथ सेवन करे, अवश्य लाभ होगा।

कब्जनाशक गोलियाँ

पांच तोले विशुद्ध रसौत, काली मिर्च दो तोले और नीम के बीज की गिरी पांच तोले - समस्त सामग्री पीसकर नीम के पत्ते के रास में घोट ले अच्छी प्रकार बारीक़ हो जाने पर काबुली चने के बराबर गोलिया बना ले। एक गोली प्रातः ताजा जल से उपयोग करे तथा एक गोली पानी में धिसकर शौच-निवती पर मस्सो में लगाये। ही बवासीर से छुटकारा मिल जायेगा।

नीम की गिरी एक छटांक,शुद्ध रसौत एक चटक - दिनों अच्छी प्रकार कूटकर मिलाये और जंगली बेर के बराबर गोलियाँ बना ले। एक गोली नित्य प्रातः पानी के साथ एक मास तक निरंतर उपयोग करे, बवसीर में आराम होगा।

पथरी-

नीम के पत्ते जलाकर साधारण विधि से शर तैयार करे - दो-दो माशे ठण्ढे जल से दिन में तीन बार उपयोग करने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी ठीक हो जाती है।

खुजली

नीम की नरम कोपले, ढाई तोला नित्य ठंडाई के रूप में घोटकर पिने से खुजली दूर होती है।

बढ़िया मरहम

रक्त विकार के कारण प्रायः फोड़े-फुंसियाँ निकलती रहती है और कई बार ये इतनि बिगड़ घाव साफ करने के लिए नीम के पत्तो मरहम बनाई जाती है जो कभी असफल नही होती।

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