खाँसी और ठसके के घरेलू उपचार




आजकल खांसी के ठसके एक आम समस्या है, जो ख़ास तौर पर सुबह शाम नहाने और भोजन के बाद चलते हैं। कभी कभी धुल धुएँ और तेज गंध से भी ये शुरू हो जाते हैं और काफी समय तक गले के भीतर गुदगुदाते रहते हैं।
आमतौर पर खांसी होने का मतलब है कि हमारा श्वासन तंत्र ठीक से काम नहीं कर रहा है। साथ ही खांसी गले में कुछ तकलीफ होने की और भी इशारा करती है।
हालांकि यह साबित हो चुका है कि तीन हफ्ते से ज्यादा खांसी होने पर टीबी की जांच करवा लेनी चाहिए क्योंकि लापरवाही बरतने से खांसी बढ़कर टीबी का रूप ले सकती है।
खांसी होने पर पानी पीना चाहिए या फिर पीठ को सहलाने से आराम मिलता है।
खाना खाते या बोलते समय खांसी आए तो खाने को धीरे-धीरे छोटी-छोटी बाइट में खाना चाहिए।
खांसी होने पर खांसी को रोकने के लिए आमतौर पर मूंगफली,चटपटी व खट्टी चीजें, ठंडा पानी, दही, अचार, खट्टे फल, केला, कोल्ड ड्रिंक, इमली, तली-भुनी चीजों को खाने से मना किया जाता है।
श्वसन तंत्र के रोगों में फेफड़ों के रोग, श्वासनली के रोग सहित इस तंत्र के अन्य रोग शामिल हैं। श्वसन तंत्र के रोगों में स्वयंसीमित सर्दी-जुकाम से लेकर जीवाणुजन्य न्यूमोनिया जैसे घातक रोग हैं।
सूखी खांसी यह खांसी आवाज करती हुई विस्फोटक नि:श्वसन होती है। इसका उद्देश्य श्वांस-प्रणाली या सांस की नली से नि:स्राव या फंसा हुआ कोई बाहरी पदार्थ को निकाल फेंकना होती है। यह स्वत: होनेवाली एक परावर्तक क्रिया के रूप में होती है या स्वेच्छा से की जाती है। खांसी श्वसन व्याधियों का सबसे सामान्य लक्षण है। खांसी होने के निम्नलिखित कारण है-
(क) शोथज या सूजन की स्थितियां 
1वायु मार्ग की शोथज स्थितियां- फेरिन्जाइटिस, टांसिलाइटिस श्वसन-यंत्र शोथ, श्वसन-प्रणाली शोथ, श्वसनी शोथ एवं श्वसनिका शोथ,
2. फुफ्फुसों की शोथज या सूजन की स्थितियां-न्यूमोनिया एवं ब्रोंकोन्यूमोनिया, फुफ्फुस-विद्रधि, यक्ष्मा, फुफ्फुसों के फंगस रोग।
(ख) यान्त्रिक कारण
1. धूम्रपान करने के कारण, धुंआ, धूल या क्षोभकारी गैसों के सूंघने के कारण,
2. वायु-मार्ग पर किसी अबुर्द (ट्यूमर), ग्रेन्यूलोमा, महाधमनी एन्यूरिज्म या मीडियास्टिनम में स्थित किसी पिण्ड द्वारा पड़ रहे दबाव के कारण,
3. श्वसन नलिका के अन्दर कोई बाहरी वस्तु फंस जाने के कारण,
4. श्वसनी-नलिकाओं की संकीर्णता, श्वसनी दमा, तीव्र या पुराना श्वसनी शोथ तथा
5. पुराना इंफेक्शन।
(ग) ताप उत्तेजना ठंडी या गर्म हवा का झोंका लगना या मौसम में अचानक परिवर्तन होने के कारण भी खांसी या तो सूखी होती है या गीली अर्थात् बलगम के साथ होती है। साधारणत: ऐसी खाँसी ऊपरी वायु मार्ग फेरिंग्स, स्वर यंत्र, श्वास प्रणाली या श्वसनी में हुए क्षोभ के कारण होती है। इसके कई विशिष्ठ प्रकार हैं:
1. धातु ध्वनि खांसी: ऐसी खांसी फैरिंग्स में धूम्रपान से उत्पन्न प्रणाली शोथ या बड़े श्वसनियों में ब्रोंकाइटिस के प्रथम स्टेज में क्षोथ होने के कारण होती है।
2. कर्कश खांसी: ऐसी खांसी गले में कोई विक्षति होने के कारण होती है।
3. घर्घर के साथ खांसी: ऐसी खांसी श्वसन के दौरान आवाज करती हुई प्रश्वसनी कष्ठ-श्वास अर्थात् घर्घर के साथ होती है। ऐसी खांसी स्वरयंत्र में डिफ्थीरिया होने के कारण भी होती है।
4. कूकर-खांसी: ऐसी खांसी छोटी-छोटी तीखी व सांस छोड़ते समय के बाद एक लम्बी, आवाज करती हुई तथा सांस लेने में ‘हूप’ के साथ होती है। ऐसी खांसी कूकर खांसी में होती है।
5. गो-खांसी: इसमें कोई विस्फोटक आवाज नहीं होती। इस खांसी की आवाज कुत्ते के रोने या गाय की डकार जैसी होती है। ऐसी खांसी स्वर-यंत्र रोगग्रस्त में होती है।
6. हल्की, आधी दबी हुई कष्टदायी खांसी: ऐसी खांसी शुष्क प्लूरिसी में होती है।
गीली खांसी गीली खांसी ऐसी खांसी है जिसके होने से बलगम निकलता है जो श्लेष्माभ, सपूय या श्लेष्म-पूयी होती है। श्लेष्माभ बलगम श्लेष्मा का बना होता है जो श्वसनी ग्रंथियों द्वारा सृजित होता है। यह गाढ़ा, लस्सेदार, उजले रंग का होता है। ऐसा बलगम तीव्र श्वसनीय शोथ में, न्यूमोनिया के प्रथम चरण में अथवा यक्ष्मा की प्रारम्भिक अवस्था में निकलता है।
बलगम गाढ़ा या पतला पूय का बना होता है तथा पीला या हरा-पीला रंग का होता है। इस प्रकार का बलगम पुराना श्वसनी शोथ में, पुराना संक्रमी दमा में, श्वसनी-विस्फार, न्यूमोनिया की देर वाले अवस्था में फुफ्फुस विद्रधि (फेफड़े के अंदर फोड़ा) या यक्ष्मा के बढ़े हुए स्वरूप में मिलता है।
श्लेष्म पूयी बलगम हल्के पीले रंग का होता है। ऐसा बलगम सपूय बलगम वाली व्याधियों (जैसा ऊपर बताया गया है) की प्राथमिक अवस्थाओं में निकलता है।
दुर्गंध करता हुआ बलगम फुफ्फुस विद्रधि, फुफ्फुसी गैंग्रीन तथा श्वसनी विस्फार की स्थितियों में निकलता है।
रक्त में सना बलगम रक्तनिष्ठीवन का परिचायक होता है।
झाग वाला, गुलाबी रंग का बलगम फुफ्फुसी शोथ से निकलता है।
हरा रंग का बलगम फुफ्फुसी गैंग्रीन में निकलता है।
काला बलगम कोयला-खदानी फुफ्फुस धूलिमयता में निकलता है।
लोहे पर लगे जंग के रंग का बलगम बिगड़े हुए न्यूमोनिया में,
कत्थे के रंग का या बादामी रंग की चटनी जैसा बलगम फुफ्फुसी अमीबिक रुग्णता में अथवा ऐसे यकृत अमीबी विद्रधि में जो फटकर किसी श्वसनी से सम्पर्क स्थापित कर लिया हो, मिलता है।
सुनहला बलगम ऐस्बेटॉस रुग्णता से निकलता है।
आयुर्वेद में खांसी का उपचार
खांसी का उपचार जितनी जल्दी हो जाएं उतना बेहतर है। आयुर्वेद में खांसी का स्थायी इलाज भी मौजूद हैं। आयुर्वेद के अनुसार, जब कफ सूखकर फेफड़ों और श्वसन अंगों पर जम जाता है तो खांसी होती है। आयुर्वेद की औषधिंयां खांसी में इतनी प्रभावशाली होती हैं कि इन्हें कोई भी आसानी से ले सकता है।
कुछ गोलियों को चूसने से भी खांसी में आराम मिलता है। जैसे व्योषादि वटी, लवंगादि वटी, खदिरादि वटी आदि।
चंदामृत रस भी खांसी में अच्छा रहता है।
हींग, त्रिफला, मुलहठी और मिश्री को नीबू के रस में मिलाकर लेने से खांसी कम करने में मदद मिलती है।
त्रिफला और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से भी फायदा होता है।
गले में खराश होने पर कंटकारी अवलेह आधा-आधा चम्मच दो बार पानी से या ऐसे ही लें।
कनकासव 3 3 चम्मच गर्म जल से भोजन के बाद सेवन तथा वासकासव का भी इसी प्रकार प्रयोग करें।
पीपली, काली मिर्च, सौंठ और मुलहठी का चूर्ण बनाकर चौथाई चम्मच शहद के साथ लेना अच्छा रहता है।
पान का पत्ता और थोड़ी-सी अजवायन पानी में चुटकी भर काला नमक व शहद मिलाकर लेना भी खांसी में लाभदायक होता है। खासकर बच्चों के लिए।
बताशे में काली मिर्च डालकर चबाने से भी खांसी में कमी आती है।
खांसी से बचने के सावधानी बरतते हुए फ्रिज में रखी ठंडी चीजों को न खाएं। धुएं और धूल से बचें। खांसी के आयुर्वेदिक इलाज के लिए जरूरी है कि किसी अनुभवी चिकित्सक से संपर्क किया जाएं। अपने आप आयुर्वेदिक चीजों का सेवन विपरीत प्रभाव भी डाल सकता है।
खाँसी के घरेलू उपचार
सर्दी, खांसी, सिरदर्द, जुकाम जैसी कुछ बीमारियां होती हैं जो किसी को भी किसी भी समय हो सकती है। खांसी की समस्या होने पर आप सुकून से कोई काम नहीं कर सकते हैं। खांसी बदलता मौसम, ठंडा-गर्म खाना पीना या फिर धूल या किसी अन्य चीज से एलर्जी के कारण सकती है । खांसी होने पर तकलीफ भी ज्यादा होती है। आइए हम आपको खांसी से बचने के कुछ आसान से उपायों के बारे में बताते हैं।
*सौंठ को पीस कर पानी में खूब देर तक उबालें। जब एक चौथाई रह जाए तो इसका सेवन गुनगुना होने पर दिन में तीन चार बार करें। तुरंत फायदा होगा।
*गुनगुने पानी से गरारे करने से गले को भी आराम मिलता है और खांसी भी कम होती है।
*तुलसी पत्ते, 5 काली मिर्च, 5 नग काला मनुक्का, 6 ग्राम गेहूँ के आटे का चोकर , 6 ग्राम मुलहठी, 3 ग्राम बनफशा के फूल लेकर 200 ग्राम पानी में उबालें। 1 /2 रहने पर ठंडा कर छान लें। फिर गर्म करके बताशे डालकर रात सोते समय गरम-गरम पी जाएँ और चादर ओढ़कर सो जाएँ तथा हवा से बचें। कैसी भी खुश्क खाँसी हो, ठीक हो जाएगी।
*काली मिर्च, हरड़े का चूर्ण, तथा पिप्पली का काढ़ा बना कर दिन में दो बार लेने से खाँसी जल्दी दूर होती है।
*1 चम्मच शहद में पिसी हुई कालीमिर्च मिलाकर पीने से भी खांसी जल्दी ही दूर हो जाती है|
*1 चम्मच अदरक का रस में एक चोथाई शहद एवं चुटकी भर हल्दी मिलाकर लेने से खांसी जल्दी ही दूर हो जाती है।
*मूली का रस और दूध को बराबर मिलाकर 1 -1 चम्मच दिन में छह बार लेने से भी शीघ्र लाभ मिलता है ।
*हींग, काली मिर्च और नागरमोथा को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन भोजन के बाद दो गोलियों का सेवन करने से खाँसी और कफ में लाभ मिलता है ।
*1 चम्मच अजवाइन एवं हल्दी मिलाकर गरम कर ले,फिर उसे ठंडा होने के बाद शहद मिलाकर पीने से खांसी जल्दी ही दूर हो जाती है।*खांसी होने पर सेंधा नमक की डली को आग पर अच्छे से गरम कर लीजिए। जब नमक की डली गर्म होकर लाल हो जाए तो तुरंत आधा कप पानी में डालकर निकाल लीजिए। उसके बाद इस नमकीन पानी को पी लीजिए। ऐसा पानी 2-3 दिन सोते वक्त पीने पर खांसी समाप्त हो जाती है।
*शहद, किशमिश और मुनक्के को मिलाकर लेने से खांसी जल्दी ही ठीक हो जाती है।
मेरे अनुभव से कुछ कारगर अद्भुत प्रयोगउपाय 1 तुलसी के पत्ते, 5 काली मिर्च, 5 नग काला मनुक्का, 6 ग्राम चोकर (गेहूँ के आटे का छान), 6 ग्राम मुलहठी, 3 ग्राम बनफशा के फूल लेकर 200 ग्राम पानी में उबालें। 100 ग्राम रहने पर ठंडा कर छान लें। फिर गर्म करें और बताशे डालकर रात सोते समय गरम-गरम पी जाएँ। पीने के बाद ओढ़कर सो जाएँ तथा हवा से बचें। आवश्यकतानुसार 3-4 दिन लें, कैसी भी खुश्क खाँसी हो, ठीक हो जाएगी।
उपाय 2- सेंधा नमक (लाहौरी, पाकिस्तानी नमक) की एक सौ ग्राम जितनी डली खरीदकर घर में रख लें। जब भी किसी को खाँसी हो, इस सेंधा नमक की डली को चिमटे से पकड़कर आग पर, गैस पर या तवे पर अच्छी तरह गर्म कर लें। जब लाल होने लगे तब गर्म डली को तुरंत आधा कप पानी में डुबोकर निकाल लें और नमकीन गर्म पानी को एक ही बार में पी जाएँ। ऐसा नमकीन पानी सोते समय लगातार दो-तीन दिन पीने से खाँसी, विशेषकर बलगमी खाँसी को पूर्ण आराम आ जाता है।
विशेष- (1) एक बार काम लेने के बाद नमक की डली को सुखाकर रख दें। इस प्रकार इसे बार-बार काम में लिया जा सकता है।
उपाय 3- इसी से मिलता-जुलता एक अन्य प्रयोग इस प्रकार है- एक ग्राम सेंधा नमक और पानी में 125 ग्राम को गर्म तवे पर छमक दें। आधा रहे तब पी लें। सुबह-शाम पीने से खाँसी कुछ ही दिन में मिट जाएगी।
खाँसी कोई रोग नहीं होता। यह गले में हो रही खराश और उत्तेजना की सहज प्रतिक्रिया होती है। असल में खाँसी गले और सांस की नलियों को खुला रखने के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है, पर हद से ज़्यादा होनेवाली खाँसी किसी न किसी बीमारी या रोग से जुड़ी होती है। कुछ खाँसीयां सूखी होती हैं, और कुछ बलगम वाली।
खाँसी तीव्र या पुरानी होती है:
*. तीव्र खाँसी अचानक शुरू हो जाती हैं, और सर्दी-ज़ुकाम, फ्लू या सायनस के संक्रमण के कारण होती है। यह आम तौर से दो या तीन हफ़्तों में ठीक हो जाती है।
*. पुरानी या दीर्घकालीन खाँसी दो तीन हफ़्तों से ज़्यादा जारी रहती है।
योगिक क्रिया खांसी के लिए
मुद्रा- बाएं हाथ का अंगूठा सीधा खडा कर दाहिने हाथ से बाएं हाथ कि अंगुलियों में परस्पर फँसाते हुए दोनों पंजों को ऐसे जोडें कि दाहिना अंगूठा बाएं अंगूठे को बहार से कवर कर ले ,इस प्रकार जो मुद्रा बनेगी उसे अंगुष्ठ मुद्रा कहेंगे।
लाभ - अंगूठे में अग्नि तत्व होता है.इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर में गर्मी बढऩे लगती है. शरीर में जमा कफ तत्व सूखकर नष्ट हो जाता है।सर्दी जुकाम,खांसी इत्यादि रोगों में यह बड़ा लाभदायी होता है, कभी यदि शीत प्रकोप में आ जाए और शरीर में ठण्ड से कपकपाहट होने लगे तो इस मुद्रा का प्रयोग लाभदायक होता है। रोज दस मिनट इस मुद्रा को करने से बहुत कफ होने पर भी राहत मिलती है। कफ शीघ्र ही सुख जाता है। साथ ही जरा सा सेंधा नमक धीरे धीरे चूसने से लाभ होता है। सुबह कोमल सूर्यकिरणों में बैठके दायें नाक से श्वास लेकर सवा मिनट रोकें और बायें से छोड़ें। ऐसा 3-4 बार करें। इससे कफ की शिकायतें दूर होंगी।
सर्दी-खांसी का रोग अक्सर कब्जियत, तापमान में परिवर्तन, आवश्यकता से अधिक भोजन लेने और कच्ची शक्कर खाने से हो सकता है। अगर यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसे इलाज के साथ-साथ गुनगुना पानी पिलाना चाहिए तथा कब्ज को दूर करने का उपचार करना चाहिए। सर्दी-खांसी का उपचार एक्यूप्रेशर चिकित्सा के द्वारा करने से रोगी को बहुत आराम मिलता है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा के द्वारा सर्दी-खांसी रोग का उपचार- दक्षिण नासा रंध्र के पास तथा कपाल के ऊपर के भाग के वाम में दो बिंदु निर्देशित हैं
(प्रतिबिम्ब बिन्दु पर दबाव डालकर एक्यूप्रेशर चिकित्सा द्वारा इलाज करने का चित्र)
सर्दी तथा खांसी से पीड़ित व्यक्ति को एक्यूप्रेशर चिकित्सा के द्वारा प्रेशर देने से व्यक्ति को बहुत आराम मिलता है। इस चिकित्सा के द्वारा यह प्रेशर दिन में 2-3 बार देना चाहिए।

एक टिप्पणी भेजें

यहाँ पर आपको मिलती है हेल्थ न्यूज, डेली हेल्थ टिप्स और ताजा स्वास्थ्य जानकारियां। इसके साथ ही जीवनशैली और चिकित्सा जगत में होने वाली नयी खोजों से अवगत भी कराते हैं हम।