बेल: कई बीमारियों की अचूक औषधि


शिव का प्रिय फल-’बेल’ पेट के तमाम रोगों (गैस, कब्जियत, जलन, खट्टी डकारें, बदहजमी, संग्रहणी, भूख न लगना, शुगर, हृदयरोग,घाव, कफ, ज्वर) आदि के लिये साक्षात ‘महाकाल’ है। बेल पत्र इसी बेल नामक फल की पत्तियाँ हैं जिनका प्रयोग पूजा में किया जाता है। इस पेड़ में पुराने पीले लगे हुए फल दुबारा हरे हो जाते हैं तथा इसको तोड़कर सुरक्षित रखे हुए पत्तों को 6 महीने तक ज्यों के त्यों बने रहते हैं और गुणहीन नहीं होते। इस पेड़ की छाया शीतल और आरोग्य कारक होती हैं। इसलिए इसे पवित्र माना जाता हैं।

पका हुआ बेल मीठा, पाचक ,रुचिकर,खुशबूदार और पौष्टिक तथा शीतल फल है। पेट की बीमारियों में जहां अधिकतर दवाइयां थोडे समय का असर दिखाकर निष्क्रिय हो जाती हैं, वहीं बेल फल एक अचूक और असरकारक औषधि के रूप में पेट की तमाम बीमारियों को जड़ से मिटा कर समाप्त करता है।

पकने पर हरे से सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। बेल का फल ऊपर से बेहद कठोर होता है। खोल को तोड़ने पर मीठा रेशेदार सुगंधित गूदा निकलता है। जिसमें पर्याप्त मात्रा में बीज होते हैं। इस अकेले फल में हजारों तरह के गुण विद्यमान हैं, जो कई रोगों के लिए बेहद लाभकरी है। इसके फल, फूल, पत्ते, जड़ और छाल भी उपयोगी हैं। इसका कच्चा फल जठराग्नि को तीव्र -पाचक रक्त को रोकने वाला पक्का फल कषाण, मधुर और हल्का रेचक होता है।

» पत्तों का रस घाव को ठीक करता है, दर्द को कम करता है, ज्वर को नष्ट करता है, जुकाम और श्वास रोग मिटाने तथा शुगर कम करता है। बेल की छाल और जड़ घाव, कफ, ज्वर, गर्भाशय का घाव, नाड़ी अनियमितता, हृदयरोग आदि रोगों को दूर करने में सहायक होती है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। बेल में विद्यमान उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि विद्यमान है। जिससे की बेल फल औषधीय गुणों से सरोबार हैं। बाजार में बेल का मुरब्बा, बेलफल का चूर्ण, पके हुए बेलफल का गुदा, बेल का कच्चा फल, बेल की जड़, पत्तियाँ बेल का शर्बत भी मिलता है। उदर विकारों में बेल का फल रामबाण दवा है। यह रोग निवारक ही नहीं बल्कि यह स्वास्थ्यवर्धक भी है। बेल का शरबत हमेशा खाली पेट ही अधिक फायदेमंद होता है, दिन भर बेल का शरबत पीने से उतना फ़ायदा नहीं मिलता जितना सुबह खाली पेट मिलता है।

» बेल के फल में नमी 61.5 %, कार्बोहाइड्रेट 31.8 %,वसा 3 %, फाइबर 2.9 %,प्रोटीन 1.8 % तथा बेल फल के 100 ग्राम गूदे में कैल्शियम 85 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 50 मि.ग्रा आयरन 2.6 मि.ग्रा, विटामिन ‘सी’ 2 मि.ग्रा। इनके इलावा बेल में 137 कैलोरी ऊर्जा म्युसिलेज पेक्टिन, शर्करा, टैनिन्स तथा कुछ मात्रा में विटामिन ‘बी’ भी पाया जाता है। बेल के गूदे में-गोंद ,ग्लूकोज, पतेल ,मार्मेलोसींन और प्रहासक ग्लूकोज तथा पत्तों में आयरन, कैल्शियम, मग्नीशियम और पोटेशियम भी पाए जाते हैं। बेल के गुद्दे में पेक्टिन नामक एक महत्त्वपूर्ण घटक है जो आंतो के लिए रक्षक के समान कार्य करता है । बड़ी आँत में पाए जाने वाले हुकवर्म हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने की क्षमता भी इस पदार्थ में है।

» बेल का मुरब्बा, बेलफल का चूर्ण, पके हुए बेलफल का गुदा, बेल का कच्चा फल, बेल की जड़, बेल की पत्तियाँ, बेल का शर्बत भी भारत में खूब मिलता है। पेचिश में मुरब्बा खाने से फौरन लाभ मिलता है। कब्ज वालों के लिए रोज रात को एक चम्मच बेलफल चूर्ण लेना फायदेमंद है। बेल का शर्बत जिन्हें कब्ज रहता है, उनके लिए तो यह महाऔषधि है। इससे आँतों में संचित मल और आँव साफ हो जाता है। पेट के अनेक रोग दूर हो जाते हैं। बेल का शर्बत गर्मियों में शीतलता प्रदान करता है। इससे पेट साफ होता है, गर्मियों में जब तक बेलफल मिलते रहें, इस शर्बत का नियमित सेवन किया जा सकता है। पेट के तमाम रोगों के साथ साथ बेल फल अन्य रोगों में भी असरकारी होता है। छोटे कच्चे बेल के फलों का संग्रह छीलकर काटकर सुखाकर बंद शीशे के जार में ठन्डे स्थान पर रखना चाहिए। प्रयोग के लिए जंगली बेल और खाने, शर्बत आदि के लिए बाग़ बगीचे के फल ही प्रयुक्त होते हैं।

बेल का उपयोग औषधि के रूप में निम्न प्रकार से भी किया जा सकता है।
हैजे की स्थिति में बेल का शरबत या बिल्व चूर्ण गर्म पानी के साथ देते हैं।
बेल के ताजा पत्तों को पीसकर फोड़ों पर बांधने से फोड़े शीघ्र ठीक होते है।
पके बेल के गूदे में काली मिर्च, सेंधा नमक मिलाकर खाने से गला साफ़ होता है।
बेल के पत्तों के रस पानी में मिलाकर पीने से नाक से नकसीर आना रूक जाती है।
बेल के गूदे को पानी में उबालें, ठंडा होने पर कुल्ले करें मुँह के छाले ठीक हो जायेंगे।
गर्भवती स्त्रियों का जी मिचलाने लगे तो बेल और सौंठ के बने काढ़े का सेवन कराये।
बेल का सेवन शहद या मिश्री के साथ अधिक अनुकूल (गुणकारी या प्रभावशाली) होता है।
बेल फल समस्त नाड़ी तंत्र को मजबूत करता है तथा कफ-वात के प्रकोपों को शांत करता है।
बेल फल का शर्बत पीने से लू लगने पर शीघ्र आराम आता है और शरीर की गर्मी भी शांत होती है।
बेल की जड़ को पानी में भिगोकर सुबह मसलकर और छानकर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन ठीक हो जाती है।
बेल के पत्तों का रस पूरे शरीर पर मलिए और एक घंटे बाद नहा लीजिये त्वचा कान्तिमान होकर पसीने से दुर्गन्ध ख़त्म हो जाएगी।
बेल के ताजे पत्तों के रस को जले भाग पर लगाने से आराम मिलता है। बेल के पेड़ की जड़ या लकड़ी को पानी में घिस कर फोड़े – फुंसियों पर लगाने से लाभ पहुंचता है।
बेल की कोंपलो के रस में, पिसी काली मिर्च मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पीलिया में आराम आता है। शरीर पर बेल के पत्तो के रस की मालिस कर ने से सूजन में भी लाभ मिलता है।
उन्माद (पागलपन) अनिद्रा में बेल की जड़ का चूर्ण फायदेमंद होता है। बेल की जड़ को कूट पिस कर काढ़ा बन ले इसे सुबह और शाम लेने से उदासीनता और पागलपन समाप्त हो जाता है।
रक्त दोस के निवारण के लिए बेल की एक चम्मच जड़ चूर्ण में आधा चम्मच गोखरू चूर्ण मिला कर सुबह खौलते पानी में उबाल कर मिश्री या शहद मिला कर चाय की तरह से 15 -20 दिनों तक सेवन करे रक्त दोस दूर होंगे।

पके बेल का शर्बत नियमित सेवन से पेट साफ रहता है।
छोटे बच्चों को नियमित पका बेल खिलाने से शरीर की हड्डियाँ मजबूत होती हैं।
शारीरिक कमजोरी और पेट के सभी रोगों के लिए नियमित बेल का मुरब्बा खाए।
सामान्य दुर्बलता के लिए टॉनिक के लिए बेल का उपयोग पुराने समय से ही किया जाता है।
यह स्वादिष्ट,पचने में आसान, भूख बढ़ाने वाला, कमजोरी को दूर करके चुस्ती देने वाला है।
बेल की पत्तिया सेंधानमक और कालीमिर्च के साथ सेवन करने से अपच का रोग दूर हो जाता है।
बेल की जड़ के काढ़े में छोटी पीपल का चूर्ण मिला कर पीने से अपच की समस्या ठीक हो जाती है।
धातु की कमजोरी में बेल के पत्तों के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम रोजाना चटाने से लाभ होता है।
बेल के पत्तों के रस में या पत्तों की चाय में जीरा चूर्ण और दूध मिलाकर पीने से कमजोरी दूर होती है।
पके बेल का फल शहद व मिश्री के साथ सेवन से शरीर का खून साफ होता है और खून में भी वृद्धि होती है।
बेल के पत्तों के रस में थोड़ी कालीमिर्च और सेंधानमक मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करने पेट की जलन समाप्त होती है।
बेल की गिरी, कालीमिर्च, सफेद इलायची और थोड़ी-सी मिश्री को मिलाकर पानी के साथ सेवन से पाचन क्रिया मजबूत होती है।
अजीर्ण में बेल की पत्तियों के दस ग्राम रस में, एक-एक ग्राम काली मिर्च और सेंधानमक मिलाकर पिलाने से आराम मिल सकता है।
बेल गिरी के चूर्ण को मिश्री मिले हुए दूध के साथ सेवन करने से खून की कमी, शारीरिक दुर्बलता तथा वीर्य की कमजोरी दूर हो जाती है।
बेल और हरसिंगार के 5-5 पत्ते पानी में चाय की तरह उबालकर रख लें। इस काढ़े में काला नमक मिलाकर पीने से पेट की गैस में लाभ मिलता है।
सूखे बेल के पत्तों के चूर्ण में शहद मिला कर एक चम्मच सुबह-शाम सेवन करे या पके बेल के गूदे में थोड़ी मलाई मिलाकर खाने से मूत्र और वीर्य रोग ठीक होते हैं।
बेलगिरी, असगंधा और मिश्री को बराबर मात्रा में मिला कर उसमें 1/4 भाग उत्तम केसर का चूर्ण मिलाकर, एक चम्मच सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन से कमजोरी दूर होगी।
रक्त की कमी में पके हुए सूखे बेल की गिरी का चूर्ण मिश्री मिला गर्म दूध के साथ एक चम्मच पावडर प्रतिदिन के सेवन से शरीर में नए रक्त का निर्माण होकर स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
बेल के पके गूदे को 6 -7 घंटे पानी में भीगी इमली और 50 ग्राम बूरा मिला दही में मिला कर मिक्सी आदि में घोंट कर शरबत बना लें। इस शर्बत का कुछ दिन तक नियमित सेवन करे।
100 ग्राम बेलगिरी चूर्ण में 20 -20 ग्राम अदरक और इलायची के चूर्ण को पीसकर इसमें इच्छानुसार मिश्री मिलाकर रख लें और खाने के बाद आधा चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी से सुबह शाम सेवन से पाचन क्रिया मजबूत होती है और भूख खुलकर लगती है। पका हुआ बेल गिरी फल खाने से मंदाग्नि नष्ट होती है और बुखार में भी आराम होता हैं।
आधा किलो बेल के गूदे को 250 ग्राम साबुत मसूर के बने काढ़े में मिला कर 250 ग्राम देशी घी में पका लें फिर इसे कांच के चांदी के या मिट्टी के बर्तन में डाल कर रख लें एक चम्मच के नियमित सेवन से यह नुस्खा पीलिया, कामला, हैजा, पेट के सभी रोगों और पथरी जैसी बीमारियों में अदभुत असर दिखाती है।
बेलगिरी को चावल के पानी (मांड) में पीसकर उसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर दिन में 2-3 बार पीने से गर्भवती स्त्री की उल्टी, पतले, दस्त, मंद-मंद बुखार चढ़ना, हाथ-पैरों की थकावट होना आदि सभी रोग दूर हो जाते हैं।
बेल की छाल का काढ़ा पीने से अतिसार (दस्त) ठीक होता है।
बेल गिरी का चूर्ण छाछ के साथ मिलाकर पीने से दस्त रुक जाता है।
खांड के साथ बेल के गूदे को खाने से संग्रहणी दस्त) रोग ठीक होता है।
पका हुआ बेल का फल का शर्बत पेट की आँतों को साफ कर उन्हें नयी ताकत देता है।
यह कफ विकार, बुखार, बवासीर, अतिसार और पेचिश में अत्यधिक लाभ प्रदान करता है।
वेगपूर्ण खूनी दस्त हो तो मात्र कच्चे फल का चूर्ण 5 ग्राम 1 चम्मच शहद के साथ 3-4 बार देते हैं।
बेल के अंदर के गूदों को दही, छाछ तथा गुड़ के साथ खाने से खूनी पेचिश के रोगी को फायदा होता है।
बेल के हरे पत्तों को सोंठ के साथ पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं।
बेलगिरी का बारीक पिसा हुआ चूर्ण और अलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त ठीक हो जाते है।
बेल की गिरी को सौंफ के रस में घिसकर पिलाने से बच्चों को आने वाले हरे और पीले दस्त ठीक हो जाते हैं।
कब्ज व पेचिश में बेल के पत्तो का रस लगभग 10 ग्राम 2-3 घंटे के अंतर से दिन में कई बार सेवन कराते है।
सामान मात्रा में बेलगिरी और तिल को मिलाकर, मलाई या घी के साथ सेवन करने से पेचिस में आराम होता है।
बेल गिरी का चूर्ण और सोंठ के चूर्ण को गुड़ के साथ मिलाकर रोगी को देने से हर तरह का दस्त का रोग ठीक हो जाता है।
पुरानी पेचिश व कब्जियत में पके फल का शरबत या 10 ग्राम बेल 100 ग्राम गाय के दूध में उबालकर ठण्डा करके सेवन करे।
15 -20 ग्राम कच्ची बेल को गर्म बालू या राख में सेंककर उसके गूदे में थोड़ी चीनी और शहद मिलाकर पिलाने से पेचिश में आराम मिलता है।
बेल के फल के नियमित सेवन से कब्ज सदा के लिए समाप्त हो जाती है। कब्ज के रोगियों को बेल का शर्बत बना कर नियमित सेवन करना चाहिए।
बेल का फल कब्ज की आदत को तोड़ कर बवासीर को रोकता है, आँतों की कार्य क्षमता को बढाता है, भूख को सुधारता है और इन्द्रियों को बल प्रदान करता है।
होम्योपैथी में बेल के फल व पत्र दोनों को समान गुण का मानते हैं। काली मिर्च के साथ दिया गया बेल के पत्तो को पीलिया तथा पुराने कब्ज में आराम पहुँचाता है।
बेल गिरी और मिश्री 50 -50 ग्राम लेकर एक गिलास पानी में मिलाकर शर्बत बना लें और हर रोज इसका सेवन करने से कब्ज़ नष्ट होकर, चेहरे पर चमक आ जाएगी।
कच्चे बेल को धूप में सुखा लें। इन्हें बारीक पीस कपड़छान करके शीशी में भर लें। छोटे बच्चों के दाँत निकलते समय दस्तों में भी यह चुटकी भर चूर्ण शहद के साथ चटाये।
कच्चे बेल को आग में भून कर उसका गूदा, रोगी को खिलाने से पतले दस्त (अतिसार) में फौरन लाभ मिलता है। आंतों के रोगियों के लिए बेल का एक फल प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।
पका फल न मिलने पर कच्चे बेल फल को गरम बालू रेत या राख में भूनकर खाना चाहिए। कच्चे या पके बेल उपलब्ध न हों तो कच्चे फल के गुद्दे को धूप में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लेना चाहिए।
कच्चे फल के गूदे का चूर्ण और सामान मात्रा में काले तिल का चूर्ण लेकर दोनों को मिला कर घी के साथ मिला कर दस ग्राम चूर्ण सुबह शाम सेवन करे। यह उपयोग पतले दस्त में बहुत लाभकारी है।
कब्ज में शाम को बेल का मुरब्बा या गुद्दा मिश्री के साथ ली जाती है। अग्निमंदता, अतिसार में बेल का गूदा गुड़ के साथ पकाकर या शहद मिलाकर देने से खुनी दस्त व खूनी बवासीर में लाभ पहुँचाता है।
पुरानी पेचिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसे जीर्ण असाध्य रोग में भी यह लाभ करता है। गैस एवं हैजे में अत्यंत उपयोगी और अचूक औषधि माना है। इसमें विषाणु के प्रभाव को निरस्त करने तक की क्षमता है।
बेल के फूलों को प्यास, उल्टी और दस्त को खत्म करने वाला बताया गया है। बेल के फूलों को पानी में 2 घंटे के लिए डालकर रख दें इन फूलों को पीसकर पानी में छान लें और मिश्री मिलाकर दिन में कई बार पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है।
साबूत कच्चे बेल के फल को गर्म राख में भूनकर इसे छिलके सहित पीसकर रस निकालकर मिश्री मिलाकर दिन में दो बार नियमित 10-15 दिन तक सेवन करने से पुराना दस्त ठीक हो जाता है।
बेलगिरी को गुड़ के साथ नियमित दिन में 3 बार खाने से खूनी दस्त धीरे धीरे समाप्त हो जाता है।
बेलगिरी, कत्था, आम की गुठली की गिरी, ईसबगोल की भूसी और बादाम गिरी इन सब को बराबर मात्रा में मिलाकर चीनी या मिश्री के साथ रोजाना 3-4 चम्मच सेवन करने से पुराने दस्त, तथा पेचिश में आराम मिलता है।
बेल की गिरी और आम की गुठली की गिरी को बराबर मात्रा में पीसकर एक चम्मच चावल के पानी के साथ या ठंडे पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से दस्त ठीक हो जाता है।
पके फल का सेवन वात और कफ का शामक होता है।
बेल के पत्तों का रस का शहद के साथ सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।
बेल के पत्तों और अडूसे के पत्तों का 5-5 ग्राम रस तथा सरसों के तेल को मिलाकर सप्ताह भर नियमित सेवन से श्वास (दमा) रोग में आराम आता है।
दमा के रोगीयो के जमा कफ को बहार निकालने के लिए बेल की पत्तियों का काढ़ा एक-दो चम्मच सुबह-शाम शहद मिला कर सेवन करे या एक चम्मच बेल पत्तो का रस में बराबर मात्रा में सरसों का शुद्ध तेल मिला कर सेवन करे।
100 ग्राम बेल गिरी को आधा किलो पानी में हल्की आँच पर तीन सौ ग्राम रह जाने तक पका कर उतार कर छान लें। एक किलो मिश्री की एक तार चासनी बनाकर इसमें मिला ले। इसमें थोडा केसर और जावित्री डालकर इसे गुनगुना घूँट-घूँट कर सेवन से छाती में जमे कफ से राहत मिलती है।
बेल के पत्त्तों की लुगदी आँख पर बाँधने से आँख में दर्द होने पर काफी आराम मिलता है।
गर्मी से आँखें में जलन और लाल हो जाती है इसके बेल के पत्तों का रस एक-एक बूँद आँखो में डाले। आँखों की लाली व जलन ठीक होगी।
आँखें दुखने पर पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी।
श्वांस एवं मधुमेह रोगों के निवारण हेतु भी पत्र का रस सफलतापूर्वक प्रयुक्त होता है।
बेल की पत्तियों का रस का दिन में दो बार सेवन करने से डायबिटीज की बीमारी में भरपूर राहत मिलती है।
मधुमेह [शुगर] के रोगियों को बेल के ताजा बीस ग्राम पत्तों का रस रोज सेवन करे फायदा मिलेगा इससे हैजा और मल त्याग में आने वाली अनेक परेशानियों से भी निजात मिलती है।
बेल की सूखी पत्तियां, ग्वारपाठा, मेथी दाना, जामुन की गुठली और करेले की पत्तियों को पीसकर चूर्ण बना कर एक चम्मच चूर्ण रोजाना पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।
बेल गिरी शक्तिवर्धक तथा दिल को मजबूत बनाने वाला है पत्तो का रस मधुमेह एवं श्वांस रोग में लाभकारी है। 10-15 बेल के पत्ते और पाँच काली मिर्च पीस कर चटनी बना कर रोज खाए तो मधुमेह नियन्त्रित होता है।
बेल और नीम के 10 -10 पत्ते तथा तुलसी के 5 पत्ते एक साथ पीसकर गोली बनाकर सुबह रोजाना पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह के रोग में फायदा मिलता है। 10 ग्राम बेल का रस रोजाना पीने से मधुमेह रोग में शर्करा आना कम हो जाता है।
5-5 ग्राम बेल के पत्ते, हल्दी, हरड़, बहेड़ा, आंवला, और गिलोय को एक गिलास पानी में रात को कांच या मिट्टी के बर्तन में भिगों दें। सुबह इसे खूब मसलकर और छानकर आधी मात्रा में सुबह-शाम 2 महीने तक रोगी को सेवन कराने से मधुमेह नियमित होता है।
अधपके बेलफल का प्रतिदिन सेवन करने से पुराने आँव रोग से निजात मिलती है।
बेल की जड़ का काढ़ा बनाकर मिश्री को डालकर बच्चों को पिलाने से आंव आना रुक जाता है।
पाचन तंत्र में खराबी के कारण आंव के रोगी को बेलगिरी और बराबर मात्रा में आम की गुठली की गिरी कूट-छान कर चूर्ण बना लें। आधा ग्राम चूर्ण सुबह चावल की माड के साथ दिन दो-दो घंटे बाद सेवन करें। दूसरे दिन दो बार और तीसरे दिन सिर्फ़ सुबह लें। आंव बन्द हो जाने पर चूर्ण न लें। इससे रोग के कारण से आयी हुई कमजोरी भी दूर होती है।
चोट और सुजन पर बेल के पत्ते बांधने से दर्द और सूजन कम होती है।
शरीर में कहीं दर्द हो तो इसके कच्चे फल के गूदे का चूर्ण गुड मिला कर खाएं।
बेल से दर्द निवारण भी होता है बदन दर्द के लिए कच्चे फल के गूदे का चूर्ण गुड में मिला कर खाने से बदन दर्द में राहत मिलती है।
गुम चोट या मोच आने पर बेल पत्रों को पीस कर थोड़े गुड़ में पकाकर पुल्टिस बना कर मोच या चोट पर दिन में तीन चार बार गर्म करके बाँधने पर आराम आ जाएगा।
बेल के सूखे पत्तों का चूर्ण बनाकर जख्मों पर बांधने से जख्म जल्द ही भर जाते है। बेल के बीजों का काढ़ा बनाकर पीने से पेट के जख्मों का दर्द मिट जाता है।
बेल के चूर्ण को गरम किए ठन्डे तेल में मिलाकर पेस्ट बना लें। इसे जले स्थान पर लेप करने से फौरन आराम मिलता है। पके बेल के गूदे का भी लेप किया जा सकता है।
बेल के पत्तों को पानी के साथ पीस, छानकर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर दिन में 3-4 बार रोगी को पिलाने से छाती की जलन में आराम मिलता है।
विषम ज्वरों के लिए बेल की जड़ का चूर्ण व बेल के पत्तो का रस उपयोगी है।
बेल की जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से दिल की धड़कन सामान्य होती है।
हृदय की अनियमितता में फल, संकर्मण रोगों में बेल के पत्तो का रस का प्रयोग होता है।
10-10 ग्राम बेलपत्र रस और शहद में 5 ग्राम देशी घी मिलाकर चाटने से दिल के रोगो में लाभ होता है।
सूखी बेल की जड़ को पानी के साथ पीसकर माथे पर गाढ़ा लेप लगाने से सिर दर्द में लाभ होता है।
बेल गिरी को पानी या दूध में उबाल कर 10-15 दिन तक पीने से पुराना सिर का दर्द भी ठीक हो जाता है।
सर दर्द में बेल पत्र के रस से भीगी पट्टी माथे पर रखें। आठ-दस बेल पत्तों का रस निकाल कर थोड़े पानी के साथ पीने से कितना ही पुराना सर दर्द हो ठीक हो जाएगा।
कच्चे बेल गिरी का चूर्ण तथा सोंठ चूर्ण को दिन में 3 बार सेवन करने से खूनी बवासीर में आराम मिलता है।
खूनी बवासीर के लिए पके बेल के गूदे का सोठ मिला कर काढा बना एक हफ्ते तक सेवन करे खूनी बवासीर ठीक होगा।
बेलगिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री को मिलाकर एक चम्मच ठंडे पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
बच्चों के पेट में कीड़े होंने पर बेल फल के पत्तों का रस पिलाए।
जब बच्चों को दाँत निकलते समय दस्त लगते हैं तो बेल का 10 ग्राम चूर्ण एक कप पानी में पकाकर 20 ग्राम बाकी रह जाने पर एक चम्मच शहद में मिलाकर बच्चे को 2-3 बार चटाए।
गर्मियों में लू लगने पर मिश्री डालकर बेल का शर्बत पिलाएं तुरंत राहत मिलती है। बेल के ताजे पत्तों को पीसकर मेहंदी की तरह पैर के तलुओं ,सिर, हाथ, छाती पर भी इसकी मालिश करें।

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