यह सामान्य है. कि नींद के दौरान छोटे बच्चे बिस्तर में मूत्र को कर देते हैं, हालांकि कुछ बच्चों में यह प्रवृत्ति 5 वर्ष की आयु के बाद भी बनी रहती है. यदि यह सप्ताह में कम से कम दो बार 3 महीने के लिए होता है, तो इसे एक बीमारी माना जाता है और इसे बेडवाटिंग या एन्रेसिस कहा जाता है. बेडवाटिंग सबसे अधिक बार देखी गई बाल रोग की समस्या है. और आयुर्वेद में श्यायमुत्रता कहा जाता है।
- रात में न जग पाने की असमर्थता
- मूत्राशय ( ब्लैड़र) का जरूरत से अधिक क्रियाशील होना
- मूत्राशय के नियंत्रण में देरी होना
- मूत्र विसर्जन पर नियंत्रण न होना
- कब्ज
- कॉफी का सेवन
मनोवैज्ञानिक समस्या :
- आनुवांशिकी कारण
- नाक संबंधित अवरोध अथवा गहरी नींद
ये भी पढ़िए : पेशाब में जलन हो तो करें ये घरेलू उपचार
बिस्तर गीला करने से छुटकारा पाने के घरेलू उपाचार:
घरेलू उपचार के दो मुख्य प्रकार हैं एक आदत में बदलाव और दूसरा पूरक व कुछ वैकल्पिक उपाय, जैसेकि अलार्म, गिफ्ट देना, होमियोपेथी और एक्युपंक्चर इत्यादि ।
आदतन उपचार :
बिस्तर गीला करने की आदत के निवारण में कुछ आदतों पर नियंत्रण रखना भी हैं । इसके कुछ उपाय इस प्रकार हैं...
इनाम योजना- बिस्तर गीला करने वाले बच्चों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण व प्रारम्भिक उपाय हैं । जब भी बच्चा बिस्तर गीला न करे तो उसे पुरस्कृत करना चाहिए, इससे उसमें इसे जारी रखने का उत्साह आता हैं , जो कि सकारात्मक सुधार लाता हैं। हालांकि इसका एक उल्टा प्रभाव भी पड़ता हैं कि जब बच्चे बिस्तर गीला करते हैं. तो उनमें आमतौर पर ग्लानि की भावना रहती ही हैं और साथ ही इनाम न मिलने की हताशा भी रहती हैं।
सोने से पहले दो बार पेशाब कराएं : बच्चे को सोने के लिए तैयार करने से पहले पेशाब कराएं । जब बच्चा सोने के तैयार हो तो उससे पहले भी उसे पेशाब कराएं ।
शाम के समय तरल पदार्थ का सेवन कम करें : बच्चों को दिन के वक्त काफी मात्रा में तरल पदार्थ पीने को कहा जाना चाहिए । लेकिन शाम के बाद बच्चों को कम मात्रा में तरल पदार्थ पीने देना चाहिए। इससे बच्चों को सोने जाने से पहले मूत्राशय (ब्लैड़र) खाली करने में मदद मिलती हैं। जरूरत से अधिक नियंत्रण के गलत परिणाम भी हो सकते हैं जिसका नतीजा मूत्राशय (ब्लैड़र) की भंडारन क्षमता का कम होना हो सकता हैं। मूत्राशय (ब्लैड़र) की क्षमता घट जाने से मूत्राशय (ब्लैड़र) में रातभर पेशाब इकठ्ठा नहीं हो पाता और फलस्वरूप बच्चे और बिस्तर गीला करने लगते हैं।
नाइट लैम्प को करें उपयोग : रात के समय नाइट लैम्प ऑन रखकर बच्चों को रात के वक्त पेशाब करने के लिए उत्साहित किया जा सकता हैं। इससे बच्चों में अंधेरे का डर नहीं रहेगा और वह रात के वक्त शौचालय जाने से परहेज नहीं करेंगे।
समय से पेशाब कराना : रोज रात में बच्चों को जगाकर पेशाब कराने का नियम होना चाहिए। इससे बच्चों में पेशाब करने की आदत नियमित हो जाती हैं और बिस्तर गीला होने से बच जाता हैं। बड़े बच्चों, किशोर और व्यस्क को रात के वक्त अलार्म लाकर जागकर पेशाब करना चाहिए। कुछ अभिभावक बच्चों को सोने से जगाकर पेशाब कराने के लिए कुछ सांकेतिक शब्द का इस्तेमाल करते हैं ।
अलार्म : बिस्तर गीला करने वाले बच्चों को ऐसे बिस्तर पर सुलाया जाना चाहिए, जिसपर पेशाब गिरने से उसका इलेक्ट्रिक अलार्म बजना शुरू हो जाय। यह अलार्म शरीर से जुड़ा रहता हैं और जिसके सेंसर अंडरवियर से लगे होते हैं। ये अलार्म या तो हल्के उपकरण होते हैं या फिर इसमें ध्वनि अथवा कंपन होता हैं।
जरूरत से ज्यादा प्रशिक्षण : बिस्तर पर जाने से पहले व्यक्ति अधिक पानी पीकर मूत्राशय ( ब्लैड़र) में जरूरत से अधिक पानी भर लेता हैं । इस अलार्म प्रशिक्षण को दो सप्ताह तक व्यवहार में लाना चाहिए। जिससे शरीर को मूत्राशय (ब्लैड़र) के अवधारन में पहचान होती हैं।
मूत्राशय ( ब्लैड़र) का प्रशिक्षण : मूत्राशय (ब्लैड़र) को लम्बे समय तक अधिक मात्रा में पेशाब एकत्र करने का प्रशिक्षण दिया जा सकता हैं। बच्चों को दिन के समय अधिक मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करने का प्रशिक्षण देना चाहिए और पेशाब करने के बीच के समयांतराल को बढ़ाना चाहिए ।
बच्चों को नींद में उठाना : अभिभावकों को बच्चों को नींद से उठाकर पेशाब कराना चाहिए, जिससे मूत्राशय (ब्लैड़र) खाली होगा और बिस्तर गीला होने से बचेगा। इस प्रक्रिया को लिफ्टिंग कहते हैं।
बिस्तर गीला होने से बचाने के प्रबंधन की आदतन और शैक्षणिक नीति
सूखे बिस्तर का प्रशिक्षण : इस प्रशिक्षण के तहत बच्चे को एक रात हर घंटे उठाकर पेशाब कराया जाता हैं। इस प्रशिक्षण के दौरान बच्चा नौ या उससे अधिक बार पेशाब करने जाता हैं। उसके अगले दिन बच्चें को रात में केवल एक बार पेशाब करने के लिए जगाया जाता हैं।
घरेलू प्रशिक्षण : इस प्रक्रिया में अलार्म, अति सक्रिय प्रशिक्षण, साफ रखने का प्रयास और बिस्तर सूखा रखने का प्रशिक्षण।
बिस्तर गीला के लिए घरेलू उपचार
- सुबह में अपने बच्चे को गुड़ का एक टुकड़ा (20 ग्राम) दे दो।
- एक घंटे के बाद उसे 1/2 चम्मच अजवाइन में नमक (सेंधा नमक) के साथ चम्मच मिलाकर दो ।
- इसे सप्ताह में एक बार 4 सप्ताह के लिए दोहराएं.
- यह आपके बच्चे को दूध पिलाने में मदद करता है और यदि वह कृमि के शिकार के कारण पलंगों में पड़ जाता है, तो यह समस्या को दूर करना चाहिए।
- अपने बच्चे को दो बार दैनिक काला तिल का एक चम्मच दे।
- समान राशि में आंवला पाउडर और अघगैन्दा पाउडर का संयोजन बनाएं। इस चूर्ण मिश्रण का एक चम्मच एक बार अपने बच्चे को रोजाना दें