त्वचा के रोग का उपचार

त्वचा के रोग
1.आग से त्वचा का जलना
जब आग के कारण किसी व्यक्ति की त्वचा या शरीर का कोई दूसरा भाग जल जाता है तो उस जले हुए स्थान पर बहुत तेज जलन और दर्द भी होता है।

आग से जलने के कारण पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
यदि किसी व्यक्ति की त्वचा जल गई है तो उसके जले हुए भाग को तुरंत पानी के अन्दर करके काफी देर तक हिलाते रहना चाहिए। जब जलन शांत हो जाए, तो रक्त निकलने वाली बाहरी चोट पर गीले कपड़े की ठंडी पटि्टयां बार-बार लगानी चाहिए। इसके कुछ समय के बाद पट्टी को खोलकर उसके ऊपर नीम की पत्तियों का रस, घीकुंआर का रस या आलू पीसकर लगाना चाहिए। इससे रोगी की जलन बहुत जल्दी ठीक हो जाती है तथा उसके जख्म भी जल्दी भरने लगते हैं।
यदि किसी व्यक्ति का पूरा शरीर ही जल गया हो तो पूरे शरीर को ठंडे पानी से भरे हुए टब आदि में डुबोए रखना चाहिए। ऐसा करने से 2-3 घण्टों के अन्दर ही रोगी की जलन कम हो जाती है तथा दर्द भी खत्म जाता है। जलन तथा दर्द जब कम हो जाता है तब 1 भाग नारियल का तेल तथा 2 भाग चूने का पानी आपस में मिलाकर रूई के फोहे से जले हुए भाग पर लगाना चाहिए। इस प्रकार से रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने से रोगी का रोग कुछ दिनों के बाद पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

2.एक्जिमा
एक्जिमा रोग शरीर की त्वचा को प्रभावित करता है और यह एक बहुत ही कष्टदायक रोग है। यह रोग स्थानीय ही नहीं बल्कि पूरे शरीर में हो सकता है।

एक्जिमा रोग होने के लक्षण :-
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके शरीर पर जलन तथा खुजली होने लगती है। रात के समय इस रोग का प्रकोप और भी अधिक हो जाता है।
एक्जिमा रोग से प्रभावित भाग में से कभी-कभी पानी अधिक बहने लगता है और त्वचा भी सख्त होकर फटने लगती है। कभी-कभी तो त्वचा पर फुंसियां तथा छोटे-छोटे अनेक दाने निकल आते हैं।
एक्जिमा रोग खुश्क होता है जिसके कारण शरीर की त्वचा खुरदरी तथा मोटी हो जाती है और त्वचा पर खुजली अधिक तेज होने लगती है।

एक्जिमा रोग होने के कारण:-
एक्जिमा रोग अधिकतर गलत तरीके के खान-पान के कारण होता है। गलत खान-पान की वजह से शरीर में विजातीय द्रव्य बहुत अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं।
कब्ज रहने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।
दमा रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार की औषधियां प्रयोग करने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।
शरीर के अन्य रोगों को दवाइयों के द्वारा दबाना, एलर्जी, निष्कासन के कारण त्वचा निष्क्रिय हो जाती है जिसके कारण एक्जिमा रोग हो जाता है।

एक्जिमा रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
  1. औषधियों के द्वारा एक्जिमा रोग का कोई स्थायी इलाज नहीं हैं, लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
  2. एक्जिमा रोग में सबसे पहले रोगी व्यक्ति को गाजर का रस, सब्जी का सूप, पालक का रस तथा अन्य रसाहार या पानी पीकर 3-10 दिन तक उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और इसके बाद 2 सप्ताह तक साधारण भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से भोजन का सेवन करने की क्रिया उस समय तक दोहराते रहना चाहिए जब तक कि एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक न हो जाए।
  3. इस रोग से पीड़ित रोगी को फल, हरी सब्जी तथा सलाद पर्याप्त मात्रा में सेवन करना चाहिए तथा 2-3 लीटर पानी प्रतिदिन पीना चाहिए।
  4. एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को नमक, चीनी, चाय, कॉफी, साफ्ट-ड्रिंक, शराब आदि पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  5. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में लगभग 15 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए। इसके बाद पीड़ित रोगी को नीम की पत्ती के उबाले हुए पानी से स्नान करना चाहिए। इस पानी से रोगी को एनिमा क्रिया भी करनी चाहिए जिससे एक्जिमा रोग ठीक होने लगता है।
  6. सुबह के समय में रोगी व्यक्ति को खुली हवा में धूप लेकर शरीर की सिंकाई करनी चाहिए तथा शरीर के एक्जिमा ग्रस्त भाग पर कम से कम 2-3 बार स्थानीय मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए। जब रोगी के रोग ग्रस्त भाग पर अधिक तनाव या दर्द हो रहा हो तो उस भाग पर भाप तथा गर्म-ठंडा सेंक करना चाहिए।
  7. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1-2 दिन भापस्नान तथा गीली चादर लपेट स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद रोगग्रस्त भाग की कपूर को नारियल के तेल में मिलाकर मालिश करनी चाहिए या फिर सूर्य की किरणों के द्वारा तैयार हरा तेल लगाना चाहिए। रोगी व्यक्ति को इस उपचार के साथ-साथ सूर्यतप्त हरी बोतल का पानी भी पीना चाहिए।
  8. नीम की पत्तियों को पीसकर फिर पानी में मिलाकर सुबह के समय में खाली पेट पीना चाहिए जिसके फलस्वरूप एक्जिमा रोग धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।
  9. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सूत्रनेति, कुंजल तथा जलनेति करना भी ज्यादा लाभदायक है। इन क्रियाओं को करने के फलस्वरूप एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  10. रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में उपचार करने के साथ-साथ हलासन, मत्स्यासन, धनुरासन, मण्डूकासन, पश्चिमोत्तानासन तथा जानुशीर्षसन क्रिया करनी चाहिए। इससे उसका एक्जिमा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  11. एक्जिमा रोग को ठीक करने के लिए नाड़ी शोधन, भस्त्रिका, प्राणायाम क्रिया करना भी लाभदायक है। लेकिन इस क्रिया को करने के साथ-साथ रोगी व्यक्ति को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार भी करना चाहिए तभी एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
  12. एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज कराने के साथ-साथ कुछ खाने पीने की चीजों जैसे- चाय, कॉफी तथा उत्तेजक पदार्थों का परहेज भी करना चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
  13. एक्जिमा रोग को ठीक करने के लिए हरे रंग की बोतल के सर्यूतप्त नारियल के तेल से पूरे शरीर की मालिश करनी चाहिए और धूप में बैठकर या लेटकर शरीर की सिंकाई करनी चाहिए। इससे एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  14. इस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 28 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन कम से कम 8 बार पीना चाहिए तथा रोगग्रस्त भाग पर हरे रंग का प्रकाश कम से कम 25 मिनट तक डालना चाहिए। इस प्रकार से कुछ दिनों तक उपचार करने से एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

3.एलर्जी
इस रोग के कारण व्यक्तियों के शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं और कभी-कभी तो इन दानों के साथ शरीर में खुजली भी मचने लगती है। इस रोग के कारण कभी-कभी व्यक्ति के गाल तथा शरीर की त्वचा शुष्क हो जाती है। एलर्जी रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।

एलर्जी रोग होने के लक्षण:-
इस रोग से पीड़ित रोगी की त्वचा में चुभन, दाने निकलना, चकत्ते पड़ना, खुजली मचना, आंखे लाल होना, नाक का बहना, घबराहट होना, बेचैनी, नाक में खुजली मचना, नाक से अधिक मात्रा में स्राव होना, खांसी अधिक हो जाना, सांस लेने में कष्ट महसूस होना, सिर में दर्द होना, आधे सिर में दर्द तथा अधिक छींके आना जैसे लक्षण उभरते हैं। इसके अलावा इस रोग के कारण व्यक्ति को अन्य प्रकार की बीमारियां भी हो जाती है जो इस प्रकार हैं- हृदय रोग, अल्सर, दमा, एक्जिमा तथा मधुमेह आदि।

एलर्जी रोग होने का कारण :-
  1. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एलर्जी रोग उन व्यक्तियों को होता है जिनके शरीर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है।
  2. यह रोग नशीले पदार्थों का सेवन करने, हानिकारक पदार्थ पेट में चले जाना, पेट में कीड़े होना तथा रसायन मिले भोजन का सेवन, सौन्दर्य प्रसाधन, किसी विशेष प्रकार का भोजन ग्रहण करने के कारण होता है।
  3. औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण भी एलर्जी रोग हो सकता है।
  4. चीनी का अधिक सेवन करना या इससें बनी मिठाइयों का सेवन करने से भी एलर्जी रोग हो जाता है।
  5. सिन्थेटिक कपड़े पहनने तथा अत्यधिक मानसिक तनाव हो जाने के कारण एलर्जी रोग हो सकता है।

एलर्जी रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
  1. एलर्जी रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को 4-5 दिनों तक नींबू पानी, नारियल पानी, सब्जियों का रस और फलों के रस का सेवन करके उपवास रखना चाहिए। इसके बाद एक सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन सेवन करना चाहिए।
  2. इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी डिब्बाबंद खाद्य, नमक तथा चीनी का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इन चीजों के उपयोग के कारण रोगी की हालत और गंभीर हो सकती है।
  3. एलर्जी रोग से पीड़ित रोगी को सोयाबीन दूध में डालकर पीना चाहिए। इसका प्रतिदिन सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  4. एलर्जी के रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक सुबह के समय में खाली पेट नीम के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर पीना चाहिए तथा उसके आधे घंटे तक कुछ भी नहीं खाना चाहिए।
  5. यदि रोगी व्यक्ति सुबह के समय में खाली पेट 5 बूंदे अरण्डी का तेल, या रस पानी में डालकर सेवन करे तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  6. प्रतिदिन आवंले के चूर्ण में थोड़ी सी हल्दी मिलाकर पानी के साथ सेवन करने से एलर्जी रोग जल्द ही ठीक हो जाता है।
  7. एलर्जी रोग से पीड़ित व्यक्ति यदि सूर्यतप्त नीली बोतल का पानी प्रतिदिन पीता है तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है और रोगी व्यक्ति का रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  8. एलर्जी रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन नाड़ी शोधन प्राणायाम, अर्धमत्स्येन्द्रासन, सर्वांसन तथा शवासन करे तो यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  9. अर्जुन की छाल को रात के समय पानी में डालकर सुबह के समय में इस पानी को छानकर काढ़ा बनाकर पीने से एलर्जी का रोग कुछ ही दिनों के अन्दर ठीक हो जाता है।

4.अपरस
अपरस एक प्रकार का चर्मरोग है जो संक्रामक होता है। यह रोग सर्दियों के मौसम मे होता है। यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जो अधिक परेशानियों से घिरे रहते हैं। इस रोग का प्रभाव व्यक्तियों की कलाइयों, कोहनियों, कमर, हथेलियों तथा कंधों पर होता है।

अपरस रोग होने पर लक्षण:-
जब यह रोग किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग पर होता है तो उस भाग की त्वचा का रंग गुलाबी हो जाता है और फिर उस पर सफेद खुरंट जम जाते हैं। जब ये खुरंट छूटते हैं तो त्वचा से रक्त निकलने लगता हैं।

अपरस रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
  1. अपरस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कम से कम 7 से 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और उसके बाद फल-दूध पर रहना चाहिए।
  2. अपरस रोग से पीड़ित व्यक्ति को यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोगी का यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  3. अपरस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार करने के लिए सबसे पहले उसके शरीर के दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठण्डी सिंकाई करके गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  4. रोगी व्यक्ति के अपरस वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगाने से लाभ होता है।
  5. रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए और फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  6. अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नींबू का रस पानी में मिलाकर प्रतिदिन कम से कम 5 बार पीना चाहिए और सादा भोजन करना चाहिए।
  7. अपरस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर रोजाना कम से कम 2 घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए।
  8. आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीने से अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  9. अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
  10. रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में स्नान करना चाहिए और उसके बाद घर्षण स्नान करना चाहिए और सप्ताह में 2 बार पानी में नमक मिलाकर स्नान करना चाहिए।
  11. रोगी को अपने शरीर के अपरस वाले भाग को प्रतिदिन नमक मिले गर्म पानी से धोना चाहिए और उस पर जैतून का तेल या हरे रंग की बोतल व नीली बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
  12. रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर नीला प्रकाश डालना चाहिए। इसके अलावा रोगी को रोजाना हल्का व्यायाम तथा गहरी सांस लेनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

5.चर्म रोग
हमारे शरीर की त्वचा मुख्य रूप से मल-निष्कासक अंगों के अन्तर्गत आती हैं। त्वचा के माध्यम से प्रतिदिन पसीने के रूप में हमारे शरीर की अधिकांश गंदगी बाहर निकलती रहती है। जब तक हमारी त्वचा स्वस्थ रहती है तब तक शरीर के अन्दर किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं रहती हैं। लेकिन जब किसी कारण से यह अस्वस्थ हो जाती है तब इसके छिद्र बंद हो जाते हैं या शरीर में गंदगी का भार इतना अधिक बढ़ जाता है कि वह इस अंग द्वारा बाहर नहीं निकल पाती तो प्रकृति शरीर को मल-भार से मुक्त करने के लिए बहुत से रोग उत्पन्न कर देती है। जिससे यह गंदगी शरीर के बाहर निकलने लगती है। ये रोग इस प्रकार हैं- खाज-खुजली, दाद, फोड़े-फुन्सियां, उकवात, पामा, छाजन, कुष्ठ, चेचक तथा कण्ठमाला आदि। ये सभी चर्म रोग होते हैं।

चर्म रोग के लक्षण-
इस रोग से पीड़ित रोगी की त्वचा पर सूजन हो जाती है तथा उसके फोड़े-फुंसियां निकलने लगता है। रोगी व्यक्ति को खुजली तथा दाद हो जाता है और उसके शरीर पर छोटे-छोटे लाल या पीले दाने निकल आते हैं।

चर्म रोग होने का कारण:-
  1. चर्म रोग होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव्य का जमा हो जाना होता है।
  2. चर्म रोग कभी भी स्थानीय नहीं होते हैं बल्कि अन्य रोगों की तरह ही यह शरीर के अन्दर खराबी और गंदगी के कारण होते हैं।
  3. चर्म रोग भूख से अधिक भोजन करने, संतुलित भोजन न करने, उचित तथा नियमित व्यायाम न करने, आराम न करने, अच्छी तरह से नींद न लेने के कारण होता है।
  4. चाय-कॉफी तथा नशीली वस्तुओं का अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
  5. दूषित भोजन का सेवन करने के कारण भी चर्म रोग हो जाते हैं।
  6. कब्ज, सिर में दर्द, पेचिश आदि अन्य रोगों के कारण भी चर्म रोग हो सकते हैं।
  7. अधिक गर्म तथा ठंडे मौसम के कारण भी चर्म रोग हो जाते हैं।
  8. पाचन क्रिया तथा यकृत में खराबी आ जाने के कारण चर्म रोग हो जाते हैं।
  9. जिस व्यक्ति के पेट में कीड़ें होते हैं उसे भी चर्म रोग हो जाते हैं।
  10. शरीर की अच्छी तरह से सफाई न करने के कारण भी चर्म रोग हो जाते हैं।
  11. गीले वस्त्र तथा अधिक गर्म वस्त्र पहनने के कारण भी चर्म रोग हो जाते हैं।
  12. मानसिक तनाव चिंता के कारण भी चर्म रोग हो सकते हैं।
  13. रोगी व्यक्ति के वस्त्रों को पहनने तथा उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों का उपयोग करने से भी चर्म रोग हो जाते हैं।

चर्म रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
  1. इस रोग से पीड़ित रोगी को कम से कम 7 दिनों तक गाजर, ककड़ी, पालक, गाजर, पत्तागोभी, सफेद पेठा आदि फलों का रस पीना चाहिए और उपवास रखना चाहिए। फिर कुछ दिनों तक बिना पका हुआ भोजन जैसे-सलाद, अंकुरित खाद्य-पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  2. करेले के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से कुछ ही दिनों में चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
  3. मेथीदाना को पानी में कम से कम 10 घण्टे तक भिगोकर रख लें। इस पानी को सुबह के समय में प्रतिदिन पीने से कुछ ही दिनों में चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
  4. प्रतिदिन सुबह के समय में तुलसी की पत्तियां तथा अंजीर खाने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
  5. नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी से स्नान करें तथा नीम के पानी से एनिमा क्रिया करें। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
  6. चर्म रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन कुंजल तथा शंख प्रक्षालन क्रिया करनी चाहिए। इसके साथ-साथ कुछ आसन तथा यौगिक क्रिया करने से भी रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  7. इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन तथा यौगिक क्रियाएं हैं जिन्हें प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के साथ-साथ करने से चर्म रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं। ये आसन तथा यौगिक क्रियाएं इस प्रकार हैं- सर्वांगासन, मत्स्यासन, सूर्य नमस्कार, योगनिद्रा, पश्चिमोत्तानासन, जालंधर, उडि्डयान बंध, शीतली, कपालभाति तथा नाड़ीशोधन, भस्त्रिका आदि।
  8. प्रतिदिन सूर्य तप्त हरी बोतल का पानी पीने तथा उसका तेल त्वचा पर लगाने से चर्म रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
  9. यदि रोगी व्यक्ति खाज पर तुलसी का रस या फिर नींबू का रस लगाए तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है जिसके फलस्वरूप खाज ठीक हो जाती है।
  10. नींबू के रस को नारियल के तेल में मिलाकर प्रतिदिन त्वचा पर लगाने से कई प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
  11. नारियल के तेल में कपूर मिलाकर दाद या खाज पर लगाने से लाभ होता है।
  12. दाद तथा खाज पर पुदीने का रस लगाने से ये जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
  13. दाद पर गर्म ठंडा सेंक करके मिट्टी की पट्टी लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
  14. मस्से पर कच्चा आलू या कच्चा प्याज काटकर 2 सप्ताह तक दिन में 4 बार लगाने से लाभ होता है।
  15. यदि किसी व्यक्ति को फोड़ा हो गया है तो उस पर पान का पत्ता गर्म करके या फिर अरन्डी का तेल लगाकर रात भर किसी पट्टी से बांध लें। इससे फोड़ा जल्दी पककर फूट जाएगा तथा उसके अन्दर की मवाद बाहर आ जाएगी और कुछ ही दिनों में फोड़ा ठीक हो जाएगा।
  16. फोड़े पर हल्दी का लेप लगाने या फिर नमक मिले पानी से फोडे़ को धोने से फोड़ा पककर फूट जाता है और जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  17. फोड़े के ऊपर बर्फ बांधने से फोड़े का दर्द तथा सूजन कम हो जाती है। फोड़े की सिंकाई करके उस पर मिट्टी लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है।
  18. यदि चेहरे पर किसी प्रकार के फोड़े या फुंसियां हैं तो तुलसी की कुछ पत्तियों को पानी में उबालकर इस पानी से चेहरे को धोएं। इस क्रिया को दिन में कम से कम 3 बार करने से चेहरे के फोड़े-फुंसिया ठीक हो जाती हैं।
  19. 2 बड़े चम्मच अजवायन को पीसकर चूर्ण बना लें और फिर इसे दही में मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को सोते समय चेहरे पर लगा लें और सुबह के समय में गुनगुने पानी से चेहरे को धो लें, इससे चेहरे के फोड़े-फुंसियां तथा मुहांसे ठीक हो जाते हैं।
  20. इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को तेल, खटाई, मसालेदार, नशीली चीजों आदि अम्लकारक खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे चर्म रोग और बढ़ने लगते हैं।
  21. चर्म रोग से पीड़ित रोगी को धूप में बैठकर अपने शरीर पर शुद्ध सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिए और उसके बाद रगड़-रगड़ कर ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  22. चर्म रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण पेट के रोग है इसलिए इस रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को सादा और बिना चिकनाई वाले भोजन का सेवन करना चाहिए। इसके बाद चेहरे के मुंहासों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए।
  23. चोकर सहित आटे की रोटी, दही और मठ्ठे आदि का सेवन करने से चर्म रोग से पीड़ित व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  24. चर्म रोग से पीड़ित रोगी को कुछ दिनों तक प्रतिदिन 1-2 बार पेड़ू पर गीली मिट्टी की पट्टी का आधे-आधे घण्टे तक लेप करना चाहिए। यदि रोगी को कब्ज हो तो कब्ज को दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करना चाहिए तथा 24 घण्टे में एक बार एनिमा लेना चाहिए।
  25. किसी चौड़े मुंह वाले बर्तन में पानी भरकर, इसे आग पर उबलने के लिए रख दें। जब भाप निकलने लगे तो आग से बर्तन को उतार लें और लगभग 15 मिनट तक चेहरे पर भाप लें। इसके बाद मुलायम तौलिया से चेहरे को धीरे-धीरे रगड़कर साफ कर लें। इसके बाद ठंडे पानी से चेहरे को धो ले। इस प्रकार की क्रिया प्रतिदिन करने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
  26. संतरे का छिलका पानी में पीसकर दिन में 3 बार चेहरे पर मलने से चेहरा साफ हो जाता है।
  27. दही में काली चिकनी मिट्टी को मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को रात के समय में चेहरे पर लगाकर सो जाएं। फिर इसके बाद सुबह के समय में उठकर चेहरे को धो ले। इस प्रकार से यह क्रिया कुछ दिनों तक करने से चर्म रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं।
  28. चर्म रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 20 मिलीलीटर की प्रति मात्रा में प्रतिदिन 6 से 7 बार पीने तथा शरीर के रोगग्रस्त भाग पर हरे रंग का प्रकाश दिन में 25 मिनट तक डालने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
जानकारी-
चर्म रोग से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
चर्म रोग से पीड़ित रोगी को चीनी, रिफाइण्ड में बने खाद्य पदार्थ, चाय, कॉफी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
चर्म रोग से पीड़ित रोगी को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसका मूत्र साफ होता रहे, त्वचा से पसीना निकलता रहे, फेफड़े ठीक काम करते रहें और पेट में कब्ज न होने पाए।

6.दाद
यह एक प्रकार का चर्म रोग है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके शरीर की त्वचा पर छल्ले जैसे चकत्ते हो जाते हैं। दाद शरीर की त्वचा पर धब्बे के रूप में भी पाया जाता है। दाद व्यक्तियों की हथेलियों, एड़ियों, खोपड़ी, दाढ़ी तथा शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है। दाद शरीर के जिस भाग पर होता है उस भाग पर खुजली मचती है और जब व्यक्ति इसे खुजलाने लगता है तो यह और भी फैलने लगता है।

दाद होने का कारण:-
  1. दाद शरीर की त्वचा पर एक विशेष प्रकार के कीटाणु की उत्पत्ति के कारण होता है।
  2. दाद रोग शरीर की ठीक प्रकार से सफाई न करने के कारण होता है।
  3. शरीर का कोई अंग अधिक पानी में भीगने लगता है तो यह रोग उस व्यक्ति को हो जाता है।
  4. दाद का रोग एक प्रकार का तेज संक्रामक रोग है। इसलिए जिस व्यक्ति को यह रोग हो गया हो, उसके तौलियों ब्रशों तथा और भी ऐसी चीजें जिन्हें वह व्यक्ति उपयोग करता है, उन चीजों को यदि कोई अन्य व्यक्ति उपयोग करता है तो यह रोग उस दूसरे व्यक्ति को भी हो जाता है।

दाद होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
  1. दाद रोग से पीड़ित रोगी को इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठंडी सिंकाई करके, उस पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए। इससे दाद जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  2. रोगी व्यक्ति के दाद वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए इसके फलस्वरूप दाद कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
  3. यदि दाद से बहुत अधिक दूषित द्रव्य निकल रहा हो तो दाद वाले भाग को गुनगुने पानी में कम से कम तीन बार डुबोना चाहिए और इसके बाद उस पर गर्म और ठंडी सिंकाई करनी चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन रात को सोने से पहले दाद वाले स्थान पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए और सप्ताह में कम से कम दो बार पूरे शरीर पर गीली चादर की लपेट लगानी चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन दिन में 2 बार कटिस्नान करना चाहिए और दो बार दाद पर भापस्नान देना चाहिए। इसके बाद गीली मिट्टी की गर्म पट्टी दाद पर करनी चाहिए इसके फलस्वरूप रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसका दाद ठीक हो जाता है।
  4. रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके, अपने पेट को साफ करना चाहिए और फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  5. रोगी व्यक्ति को नींबू का रस पानी में मिलाकर प्रतिदिन कम से कम 5 बार पीना चाहिए और भोजन सादा करना चाहिए।
  6. दाद रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर प्रतिदिन कम से कम दो घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए।
  7. दाद रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल की 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीना चाहिए, इससे दाद का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

7.घमौरियां
घमौरी एक प्रकार का चर्मरोग है। यह रोग गर्मियों तथा बरसात के दिनों में व्यक्तियों की त्वचा पर हो जाता है।
 
यह रोग अधिक गर्मी के कारण तथा शरीर की ठीक प्रकार से सफाई न होने के कारण होता है। यह रोग व्यक्ति को कब्ज बनने के कारण भी हो सकता है।

घमौरी होने के लक्षण:-
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसकी त्वचा पर छोटी-छोटी और लाल-लाल फुन्सियां निकलती हैं, जिसमें से कभी-कभी दूषित द्रव निकलने लगता है तथा इनमें खुजली भी होती रहती है।

घमौरी होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
  1. वैसे यह रोग कुछ दिनों में अपने आप ही ठीक हो जाता है लेकिन यदि रोगी व्यक्ति इससे अधिक परेशान हो तो इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार किया जा सकता है।
  2. घमौरियों का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को रात के समय में अपने पेड़ू पर गीली मिट्टी की गर्म पट्टी बांधनी चाहिए।
  3. यदि रोगी व्यक्ति को कब्ज की शिकायत हो तो उसे प्रतिदिन सुबह के समय में एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके। इसके बाद रोगी को दिन में 2 बार अपने शरीर पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए और जब यह लेप सूख जाए तब स्नान करना चाहिए।
  4. इस रोग से पीड़ित रोगी को उत्तेजक पदार्थ वाला भोजन नहीं करना चाहिए। रोगी को हमेशा सादा भोजन ही करना चाहिए।
  5. बारिश के पानी में स्नान करन से घमौरी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  6. रोगी व्यक्ति को एक बर्तन में पानी भरकर उसमें नीम की पत्तियां डालकर उबालना चाहिए। फिर इस पानी को गुनगुना करके स्नान करना चाहिए। इस स्नान को प्रतिदिन दिन में 2 बार करने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं।
  7. रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में नीम की 4-5 कच्ची पत्तियां चबाने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

8.मुंहासे
मुंहासे जवानी में होने वाला एक आम रोग है। इस रोग को यौवन पीड़िका भी कहते हैं तथा इसे अंग्रेजी में एकनी कहते हैं। इस रोग को कीलें निकलना भी कहते हैं। यह रोग जवान स्त्री-पुरूषों को होने वाला रोग है। यह रोग 13 वर्ष की आयु से लेकर 25 वर्ष की आयु तक होता है। इस रोग में चेहरे पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं जिन्हें मुंहासे कहते हैं। कभी-कभी तो ये मुंहासे इतने अधिक होते हैं कि रोगी का पूरा चेहरा मुंहासों से ढक जाता है।

मुंहासे दो प्रकार के होते हैं-
यह मुंहासे चेहरे पर छोटे-छोटे दानों के रूप में प्रकट होते हैं और कुछ समय के बाद पक जाते हैं। इनके सूख जाने पर आस-पास की त्वचा को दबाकर इनके अन्दर की कीलें निकाल दी जाती है तो उनमें छेद हो जाते हैं जो बाद में भर जाते हैं।
दूसरे प्रकार के मुंहासें वे होते हैं जो बिना पके ही काली कील निकलने वाले होते हैं।

मुंहासे होने का कारण-
  1. मुंहासे होने का सबसे प्रमुख कारण कफ, वायु तथा रक्त के सम्बन्धित रोग है।
  2. तैलीय पदार्थ के भोजन का अधिक सेवन करने से चेहरे की त्वचा आवश्यक रूप से चर्बीदार हो जाती है, जिससे वहां की तैलीय ग्रंथियों में वृद्धि होकर वे फुन्सियों का रूप धारण कर लेती हैं जिसके कारण चेहरे पर मुंहासे निकलने लगते हैं।
  3. अधिक चिकनाई, शक्कर, मांस, शराब, चाय, कॉफी, सिगरेट आदि नशीले पदार्थों का सेवन करने से चेहरे पर मुंहासे निकलने लगते हैं। लेकिन यह रोग केवल जवान युवक-युवतियों को ही होता है।
  4. कब्ज तथा अजीर्ण रोग के कारण भी चेहरे पर मुंहासे हो सकते हैं।
  5. वासनामय जीवन जीने वाले जवान स्त्री तथा पुरुषों को मुंहासे अधिक होते हैं।
  6. स्त्रियों में मुंहासे मासिकधर्म की खराबी के कारण अधिक होते हैं।

मुंहासों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
  1. मुंहासे होने का सबसे प्रमुख कारण पेट के रोग हैं इसलिए मुंहासों का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को सादा, बिना तैलीय तथा बिना चिकनाई वाले भोजन का सेवन करना चाहिए। इसके बाद मुंहासों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए।
  2. मुंहासे रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में साग-सब्जी, उबली सब्जियां, नींबू, संतरा, अंगूर, अनार, नाशपाती, सेब, टमाटर, गाजर, अमरूद तथा पपीते आदि का अधिक सेवन करना चाहिए।
  3. चोकर सहित आटे की रोटी, दही और मठे आदि का सेवन करना मुंहासों के रोग में बहुत लाभदायक है।
  4. मुंहासों से पीड़ित रोगी को दिन में 2 बार फल और 2 बार साधारण भोजन का सेवन करना चाहिए।
  5. मुंहासें रोग से पीड़ित रोगी को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसका पेशाब साफ होता रहे, त्वचा से पसीना निकलता रहे, फेफड़े ठीक प्रकार से काम करते रहें और कब्ज न होने पाए।
  6. मुंहासों से पीड़ित रोगी को 1 दिन उपवास करना चाहिए फिर इसके बाद प्रतिदिन सुबह के समय में ताजी हवा में हल्की कसरत करनी चाहिए।
  7. मुंहासों से पीड़ित रोगी को कुछ दिनों तक प्रतिदिन 1-2 बार अपने पेड़ू पर गीली मिट्टी की पट्टी का आधे-आधे घण्टे तक लेप करना चाहिए। यदि कब्ज बन रहा हो तो कब्ज को दूर करने के लिए चिकित्सा करानी चाहिए तथा 24 घण्टे में एक बार एनिमा लेना चाहिए।
  8. मुंहासे रोग से पीड़ित रोगी को अपने चेहरे पर स्नो या क्रीम का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे मुंहासे समाप्त होने की बजाय और अधिक हो जाते हैं।
  9. मुंहासों से पीड़ित रोगी को उपचार करने के लिए किसी चौड़े मुंह वाले बर्तन में पानी भरकर आग पर उबलने के लिए रख दें। जब इसमें से भाप निकलने लगे तो आग से बर्तन को उतार लें और लगभग 15 मिनट तक चेहरे पर भाप लें और इसके बाद मुलायम तौलिये से चेहरे को धीरे-धीरे रगड़कर साफ कर लें। इसके बाद ठंडे पानी से चेहरे को धो लें। इस प्रकार की क्रिया सप्ताह में कम से कम 3 बार करनी चाहिए। मुंहासों को ठीक करने के लिए सूर्य की अल्ट्रावॉलेट किरणें बहुत ही लाभदायक होती है। सुबह के समय में सूर्य की किरणों में अल्ट्रावॉलेट किरणें होती हैं।
  10. मुंहासों को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन नियमपूर्वक सूर्योदय के समय में पूरब दिशा की ओर मुंह करके सूर्य की किरणें अपने चेहरे पर लेनी चाहिए। कुछ दिनों तक इस प्रकार से उपचार करने से मुंहासे ठीक हो जाते हैं।
  11. मुंहासों को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने चेहरे के सामने पारदर्शी शीशा रखकर ठीक सामने से प्रकाश को शीशे के बीच से गुजारना चाहिए लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि शीशा चेहरे के सामने इस प्रकार से रखें कि नीला प्रकाश चेहरे पर पड़े। इस प्रकर से कुछ दिनों तक उपचार करने से मुंहासे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
  12. रोगी व्यक्ति के मुंहासे जब सूख जाएं और उनमें काली कीलें दिखाई देने लगें तो उन्हें धीरे-धीरे हाथ से दबाकर निकाल देना चाहिए और इसके बाद चेहरे पर दूध की मलाई मल लेनी चाहिए। इससे मुंहासे जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
  13. मुंहासों को ठीक करने के लिए मसूर का चूर्ण, घी और दूध को एकसाथ मिलाकर चेहरे पर उबटन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  14. मुंहासों से पीड़ित रोगी को रात के समय कच्चे दूध को चेहरे पर मलना चाहिए और सुबह के समय उठकर चेहरे को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। इससे मुंहासे जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
  15. संतरे का छिलका पानी में पीसकर दिन में 3 बार चेहरे पर मलने से मुंहासे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
  16. दही में काली चिकनी मिट्टी को मिलाकर, इस उबटन को रात के समय में चेहरे पर लगाकर सो जाएं। फिर इसके बाद सुबह के समय में उठकर चेहरे को धो लें। इस प्रकार की क्रिया कुछ दिनों तक करने से मुंहासे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
  17. छुहारे की गुठली को घिसकर नींबू के रस के साथ मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को रात को सोने से पहले चेहरे पर लगा लें और थोड़ी देर के बाद धो लें। इस क्रिया को प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में चेहरे के मुंहासे ठीक हो जाते हैं।
  18. मुंहासों को ठीक करने के लिए मुलहठी को पानी में पीसकर लेप बना लें, इसके बाद इस लेप को चेहरे पर मल लें। इससे कुछ ही दिनों में मुंहासे ठीक हो जाते हैं।
  19. धनिया, सफेद बच, पीली सरसों, पठानी, लाल चन्दन, मजीठ, कड़वी कूठ, मालकंगनी, कालीमिर्च, बड़ के अंकुर, सेंधानमक प्रत्येक औषधि को 10-10 ग्राम की मात्रा में ले लें। फिर इसके बाद 5 ग्राम हल्दी और 40 ग्राम मसूर की दाल पहले की सामग्री के साथ मिलाकर पीस ले और चमेली के तेल में मिला लें। रोगी व्यक्ति को स्नान करने से पहले लगभग इस 20 ग्राम लेप को लेकर इसमें 5 ग्राम पिसी हुई खड़िया मिट्टी मिलाकर चेहरे पर लेप कर लें। थोड़ी देर बाद लेप को मलकर छुड़ा डालें और स्नान कर लें। स्नान करने के बाद चेहरे पर चमेली का तेल मल लेना चाहिए। इस प्रकार से मुंहासों का उपचार करने से रोगी के मुंहासे ठीक हो जाते हैं।

9.खुजली
खुजली एक प्रकार का संक्रामक रोग है और यह रोग त्वचा के किसी भी भाग में हो सकता है। यह रोग अधिकतर हाथों और पैरों की उंगुलियों के जोड़ों में होता है। खुजली दो प्रकार की होती है सूखी खुजली तथा तर या गीली खुजली।

खुजली होने का लक्षण:-
जब खुजली का रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उस व्यक्ति की शरीर की त्वचा पर छोटे-छोटे दाने (फुंसियां) निकलने लगते हैं। इन दानों के कारण व्यक्ति की त्वचा पर बहुत अधिक जलन तथा खुजली होती है। जब रोगी व्यक्ति फुंसियों को खुजलाने लगता है तो वे फूटती हैं और उनमें से तरल दूषित द्रव निकलता है।

खुजली होने के कारण:-
  1. खुजली होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव्य का जमा हो जाना है। जब रक्त में दूषित द्रव्य मिल जाते हैं तो दूषित द्रव शरीर की त्वचा पर छोटे-छोटे दानों के रूप में निकलने लगते हैं।
  2. शरीर की ठीक प्रकार से सफाई न करने के कारण भी खुजली हो जाती है।
  3. पाचनतंत्र खराब होने के कारण भी खुजली रोग हो सकता है क्योंकि पाचनतंत्र सही से न काम करने के कारण शरीर के खून में दूषित द्रव्य फैलने लगते हैं जिसके कारण खुजली हो सकती है।
  4. अधिक औषधियों का सेवन करने के कारण भी खुजली हो सकती है।
  5. खुजली होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
  6. खुजली का उपचार करने के लिए कभी भी पारा तथा गन्धक आदि विषैली औषधियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनके प्रयोग से शरीर में और भी अनेक बीमारियां हो सकती हैं।
  7. खुजली रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को 2-3 दिनों तक फलों और साग-सब्जियों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए।
  8. उपवास रखने के समय रोगी व्यक्ति को गर्म पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ हो सके। इसके बाद रोगी को कम से कम 7 दिनों तक फलों का रस तथा साग-सब्जियों का सेवन करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को सप्ताह में 1 बार भापस्नान लेना चाहिए और उसके बाद कटिस्नान करना चाहिए।
  9. खुजली रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में सोने से पहले अपने पेडू पर गीली मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए और सो जाना चाहिए। इसके बाद रोगी को सुबह के समय में कटिस्नान करना चाहिए।
  10. खुजली रोग से पीड़ित रोगी को अधिक मात्रा में फल जैसे संतरा, सेब, अंगूर तथा सब्जियों में हरा चना, मूली, पालक का अधिक सेवन करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को चने के आटे की रोटी, शहद, कच्चा दूध, मट्ठा आदि चीजों का सेवन करना चाहिए।
  11. नींबू के रस को पानी में मिलाकर प्रतिदिन दिन में कम से कम 5 बार पीना चाहिए।
  12. खुजली रोग से पीड़ित रोगी को सुबह का नाश्ता नहीं खाना चाहिए केवल दिन में एक बार तथा शाम के समय में भोजन करना चाहिए तथा नमक बिल्कुल भी सेवन नहीं करना चाहिए।
  13. खुजली रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में कम से कम 3 बार अपने पूरे शरीर पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए तथा धूप में बैठना चाहिए। जब लेप सूख जाए तब रोगी को एक टब में पानी भरकर उसमें 30 मिनट तक बैठकर स्नान करना चाहिए।
  14. खुजली रोग से पीड़ित रोगी को खुली हवा में घूमना चाहिए तथा गहरी सांस लेनी चाहिए।
  15. खुजली रोग से पीड़ित रोगी को हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 25 मिलीलीटर की मात्रा दिन में रोजाना 4 बार पीना चाहिए। इसके बाद अपने शरीर पर कम से कम दिन में आधे घण्टे तक नीले तथा हरे रंग का प्रकाश डालना चाहिए।
  16. जब रोगी के शरीर में अधिक संख्या में खुजली की फुंसियां निकल रहीं हो तो रोगी व्यक्ति को 2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए और फलों का रस पीना चाहिए। दिन में गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए और इसके साथ-साथ रोगी व्यक्ति को नींबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिए। रोग को सप्ताह में एक बार खुजली वाली फुंसियों पर ठंडी पट्टी रखकर स्नान करना चाहिए तथा पैरों को गर्म पानी से धोना चाहिए। रोगी को प्रतिदिन 2 बार कटिस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए। रात के समय में रोगी को अपने पेट पर मिट्टी की गर्म पट्टी रखनी चाहिए। इसके अलावा रोगी को गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए तथा तौलिये से अपने शरीर को पोंछना चाहिए। रोगी को अपने शरीर की खुजली की फुन्सियों पर हरा प्रकाश तथा इसके बाद नीला प्रकाश भी देना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से खुजली की फुंसियां जल्दी ठीक हो जाती हैं।
  17. खुजली की फुंसियों को मक्खी आदि से बचाने के लिए उन पर नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर लगाना चाहिए और इसके साथ-साथ इसका प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए। इसके फलस्वरूप खुजली की फुन्सियां जल्दी ही ठीक हो जाती हैं।
  18. रोगी को सुबह के समय में नीम की 4-5 पत्तियां चबानी चाहिए इससे उसकी खुजली की फुन्सियां जल्दी ही ठीक हो जाती हैं।
  19. खुजली से पीड़ित रोगी को पानी में नीम की पत्तियां डालकर उस पानी को उबालकर फिर पानी में से नीम की पत्तियों को निकालकर, पानी को गुनगुना करके प्रतिदिन दिन में उस पानी से 2 बार स्नान करने से खुजली जल्दी ही ठीक हो जाती है।

10.पसीना अधिक निकलना
शरीर से पसीना निकलना एक प्रकार की स्वाभाविक क्रिया है क्योंकि पसीना निकलने से शरीर की गंदगी बाहर निकल जाती है। लेकिन जब पसीना शरीर से बहुत अधिक निकलने लगता है तो यह एक प्रकार का रोग हो सकता है। जिसके कारण व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में बहुत अधिक पसीना निकलता है।

अधिक पसीना निकलने का कारण :-
शरीर में कमजोरी आ जाने तथा दूषित द्रव्य के अधिक जमा हो जाने के कारण व्यक्ति को यह रोग हो जाता है।

अधिक पसीना निकलने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
  1. इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए तथा इसके साथ-साथ कटिस्नान भी करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को कमर पर गीली मिट्टी की पट्टी भी करनी चाहिए, जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  2. इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट को साफ करने के बाद दूध, सब्जियां तथा सादा भोजन करना चाहिए।
  3. रोगी व्यक्ति को सोने से पहले प्रतिदिन गर्म पानी में भीगे तौलिए से अपने शरीर को पोंछना चाहिए।
  4. यदि रोगी व्यक्ति के हाथ-पैरों से अधिक पसीना निकल रहा हो तो हाथ-पैरों पर आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त तेल से मालिश करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

11.अल्सर (व्रण)
पेट के श्लेष्मकला अस्तर जब क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तो उसके कारण अम्लों का जरूरत से ज्यादा स्राव होने लगता है जिसके कारण पेट में अल्सर रोग हो जाता हैं। श्लेष्मा झिल्ली के पेट में क्षतिग्रस्त होने पर गैस्ट्रिक अल्सर तथा डुओडेन क्षतिगस्त होने पर इसे डुओडेनल अल्सर कहते हैं।

अल्सर रोग का लक्षण :-
  1. जब किसी व्यक्ति को अल्सर रोग हो जाता है तो रोगी के पेट में जलन तथा पेट में दर्द होने लगता है।
  2. अल्सर रोग से पीड़ित व्यक्ति जब भोजन जल्दबाजी में करता है तो उसके कुछ देर बाद उसके पेट में दर्द होना बंद हो जाता है। कभी-कभी भोजन करने के बाद दर्द थोड़ा कम हो जाता है लेकिन फिर भी थोड़ा-थोड़ा दर्द होता रहता है।
  3. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी जब भोजन करने में जल्दबाजी में करता है या चिंता-फिक्र अधिक करता है या फिर चिकनाई युक्त भोजन करता है तो इस रोग की अवस्था और भी बिगड़ने लगती है।

अल्सर रोग होने का कारण :-
  1. खान-पान सम्बन्धित गलत आदतें तथा भोजन करने का समय सही न होने के कारण अल्सर रोग हो जाता है।
  2. अधिक उत्तेजक पदार्थ युक्त भोजन, तेज मसालेदार भोजन, चाय तथा कॉफी सेवन करने से अल्सर रोग हो सकता है।
  3. शराब पीने, ध्रूमपान करने या तंबाकू का सेवन करने के कारण भी अल्सर रोग हो सकता है।
  4. शारीरिक, भावात्मक या मनोवैज्ञानिक तनाव होने के कारण भी अल्सर रोग व्यक्ति को हो सकता है।

अल्सर रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
  1. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए तथा इसके बाद प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।
  2. अल्सर रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को नियमित अंतराल पर ठंडा दूध पीना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
  3. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले भोजन करने का समय बनाना चाहिए तथा इसके बाद उत्तेजक पदार्थ, मिर्च मसालेदार भोजन, मांसाहारी पदार्थ का सेवन करना छोड़ देना चाहिए क्योंकि इन पदार्थों का सेवन करने से रोग की अवस्था और भी गम्भीर हो सकती है।
  4. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में ठंडे पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि उसका पेट साफ हो सके और कब्ज की शिकायत हो तो दूर हो सके। इस प्रकार से उपचार करने से अल्सर रोग ठीक हो जाता है।
  5. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट पर प्रतिदिन ठंडे कपड़े की लपेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
  6. अल्सर रोग को ठीक करने के लिए गैस्ट्रो-हैपेटिक लपेट का उपयोग करना चाहिए।
  7. पेट पर मिट्टी का लेप करने से पेट से गैस बाहर निकल जाती है जिसके परिणामस्वरूप अल्सर रोग ठीक हो जाता है।
  8. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन ठंडे पानी से कटि-स्नान करना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
  9. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी के पेट में अधिक जलन हो रही हो तो उसके पेट पर तुरंत बर्फ की थैली का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार का उपचार करने से पेट में जलन होना तथा दर्द होना बंद हो जाता है।
  10. अल्सर रोग से पीड़ित रोगी को शारीरिक तथा मानसिक रूप से अधिक आराम करना चाहिए तथा प्राकृतिक चिकित्सा से अपना उपचार करना चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

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