झुर्रियों को रोकना है जरूरी



झुर्रियां हमेशा ही खूबसूरती की दुश्मन होती हैं तो क्यों ना कुछ बातों को ध्यान में रख कर हम इन्हें आने से रोक दें। 

झुर्रियों और फाइन लाइंस ढलती उम्र के पहले लक्षण होते हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, ये बारीक झुर्रियां और गहरी होती जाती हैं और लोगों को स्पष्ट रूप से दिखने लगती हैं। हालांकि फाइन लाइंस और झुर्रियां ढलती उम्र के लक्षण हैं पर यह भी सच है कि आजकल की युवा पीढ़ी अपनी उम्र से ज्यादा की नजर आने लगी है। ऐसा कोलाजन और इलास्टिन जैसे त्वचा प्रोटीन्स की कमी के कारण होता है, जोकि त्वचा को स्निग्ध और लचीली बनाये रखने के लिये जरूरी है। इसके अलावा युवा पीढ़ी पर कई तरह के काम का दबाव और तनाव रहता है। उनके लिए कामकाज और सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करना चुनौती बन गई है और उनसे अपेक्षाएं भी बढ़ गई हैं। वक्त की कमी के कारण युवा भोजन करना भी छोड़ देते हैं या फिर असमय भोजन करते हैं। अक्सर युवाओं को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भोजन या कम पौष्टिक भोजन करने को मजबूर होना पड़ता है। उनकी त्वचा को बुरी तरह प्रभावित करता है। इसका दुष्परिणाम ललाट, आंखों, मुंह और गर्दन के आसपास फाइन लाइंस के रूप में सामने आता है। जाने-माने त्वचा विशेषज्ञ विस्तार से बता रहे हैं झुर्रियां उभरने के कारण, उनके प्रकार और झुर्रियों को न आने देने के उपाय।

झुर्रियां उभरने के कारण :- 

  • झुर्रियां, जिन्हें रिटिड भी कहा जाता है, त्वचा की सतह पर सिलवट या सिकुड़न के रूप में नजर आती हैं। युवावस्था की त्वचा में इलास्टिन नामक पर्याप्त फाइबर (रेशे) और कोलाजन नामक प्रोटीन होते हैं, जिससे त्वचा की लचक और जवानी बनी रहती है। एक उम्र के बाद इलास्टिन और कोलाजन की मात्रा कम होने लगती है, जिससे त्वचा पतली होने लगती हैं। पतली होती त्वचा में नमी सोखने की क्षमता भी कम हो जाती है और त्वचा की निचली परत भी क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। इन्हीं सब वजहों से झुर्रियां और फाइन लाइंस उभरती हैं।
  •  त्वचा विशेषज्ञ नीतू सैनी के अनुसार," सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों का ज्यादा सामना करने से एजिंग की प्रक्रिया तेज होती है। सूरज का रेडिएशन त्वचा के टिश्यूज को नुकसान पहुंचाता है और इससे कोलाजन और इलास्टिन के फिर से बनने की प्रक्रिया पर असर पड़ता है और त्वचा अपना लचीलापन खो देती है। त्वचा डैमेज होने लगती है और प्रीमेच्योर रिंकल्स बनने लगते हैं।"
  • स्मोकिंग करने से भी त्वचा में कोलाजन का बनना घट जाता है और प्रीमेच्योर एजिंग शुरू हो जाती है। बार-बार फेशियल मूवमेंट्स, एक्प्रेशन्स और स्लीपिंग पोश्चर्स भी महीन रेखाओं और रिंकल्स के बनने में योगदान करते हैं।
  •  त्वचा हमारे सोने के दौरान सिकुड़ती है या हमारे चेहरे के साथ खिंचती है और जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे त्वचा अपना लचीलापन खोने लगती है और ये सिकुडऩें स्थायी बनने लगती हैं। इस तरह फाइन लाइन्स या गहरी झुर्रियां बन जाती हैं।

जोखिम के कारण :- 

 डॉ. नीतू सैनी के अनुसार ऐसे लोग जिनकी त्वचा कुदरती तौर पर ड्राइ होती है उनके साथ प्रीमेच्योर एजिंग और रिंकल्स की समस्या ज्यादा होती है। नियमित मॉयश्चराइजर लगाने से फाइन लाइनों को बनने से रोका जा सकता है।
स्मोकर्स के साथ समय से पहले एजिंग का जोखिम जुड़ा रहता है क्योंकि स्मोकिंग को त्वचा के कनेक्टिव टिश्यूज बनने में बाधा माना जाता है और रिंकल्स आसानी से बनते हैं।

झुर्रियां कैसे-कैसी :- 

ललाट की फाइन लाइंस :-
स्किन स्मार्ट सॉल्यूशन, मुंबई के डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. बिंदु स्थालेकर कहते हैं, "ललाट पर फाइन लाइंस की वजह आनुवांशिक/ अंदरूनी गड़बडिय़ां या कुछ बाहरी परिस्थितियां भी हो सकती हैं। उम्र बढऩे के साथ ये बारीक रेखाएं नजर आनी शुरू हो जाती हैं। हालांकि बार-बार आंखें मटकाने, त्योरियां चढ़ाने, आश्चर्य और घबराहट का भाव व्यक्त करने के कारण भी ये रेखाएं ललाट की सतह पर जल्दी नजर आने लगती हैं। साथ ही धूप में असुरक्षित होकर ज्यादा देर तक रहने से भी त्वचा को नुकसान पहुंचता है और ललाट पर इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव होता है। डिहाइड्रेशन (पानी की कमी) और अस्वास्थ्यकर लाइफस्टाइल के कारण टॉक्सिन (विषाक्त तत्व) का रिसाव ज्यादा होता है और इससे त्वचा को नुकसान पहुंचता है।" 
क्रो फीट :- 
आप जब मुस्कुराते या हंसते हैं तो आंखों के कोनों के आसपास बनने वाली फाइन लाइंस और झुर्रियों को क्रो फीट के नाम से जाना जाता है। इसे मुस्कान रेखा भी कहा जाता है। आंखों के आसपास क्रो फीट या मुस्कान रेखाएं त्वचा की उम्र ढलने, धूप में ज्यादा समय बिताने, अत्यधिक तनाव में रहने, त्वचा की समुचित देखभाल नहीं कर पाने तथा धूम्रपान आदि के कारण बनती हैं। कई लोग हंसने के दौरान आंखें सिकोड़ लेते हैं। इस कारण भी ये रेखाएं उभर आती हैं। 
मैरियोनेट लाइंस :- 
कुछ वर्टिकल लाइंस और झुर्रियां मुंह के कोनों से शुरू होकर ठोढ़ी तक नजर आती हैं जिन्हें मैरियोनेट लाइंस कहा जाता है। जब आपके चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं भी होता है तो भी ये रेखाएं नजर आती हैं, लेकिन जब आप मुस्कुराते या हंसते हैं तो ये रेखाएं और गहरी नजर आने लगती हैं और आपकी ढलती उम्र की चुगली करती हैं। ये रेखाएं आपके चेहरे पर भी क्रूर, हताश या उदासी का भाव पैदा करती हैं। बुजुर्ग पुरुषों और महिलाओं के चेहरों पर झुर्रियों और फोल्ड्स के साथ ही मैरियोनेट लाइनें अधिक स्पष्ट और गहरी नजर आती हैं। आम तौर पर बुजुर्गों के चेहरे के आसपास की झुर्रियां और गहरी रेखाएं कई तरह की आड़ी-तिरछी रेखाओं के रूप में नजर आती हैं। हालांकि कम उम्र के कुछ लोगों की त्वचा की लचक कम हो जाती है और त्वचा लटकने लगती है तो उनमें भी ये रेखाएं अधिक स्पष्ट नजर आने लगती हैं। 
गर्दन की लटकती त्वचा :- 
डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. सिमल सोइन के अनुसार कई बार गर्दन के आसपास की पतली होती त्वचा के कारण गर्दन लटकी हुई दिखने लगती है। महिलाएं नेफरटिटी (मिस्र की महारानी) जैसी सुंदर गर्दन पाने की ख्वाहिश रखती हैं। मिस्र की महारानी नेफरटिटी अपनी सुराहीदार गर्दन और आकर्षक ठोढी के कारण आज भी लोकप्रिय बनी हुई हैं। नेफरटिटी जैसी गर्दन पाने के लिए बोटॉक्स की मदद ली जा सकती है जिससे गर्दन और ठोढ़ी के आसपास के क्षेत्रों की त्वचा आकर्षक बनती है। यह अन्य लोकप्रिय कॉस्मेटिक उपायों की तरह उतना लोकप्रिय नहीं है क्योंकि लोगों को इस बारे में जानकारी ही नहीं है लेकिन एक बार इसे आजमा लेने वाले बार-बार इसी उपाय को दोहराना चाहते हैं। 

झुर्रियों से बचाव :- 

  • त्वचा विशेषज्ञ नीतू सैनी के अनुसार निम्नलिखित उपाय अपनाने से झुर्रियों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है-
  •  प्रतिदिन कम से कम तीन-चार बार पानी से अच्छी तरह से मुंह धोना चाहिए।
  •  झुर्रियों से त्वचा को बचाने के लिए खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यानी भोजन में हरी सब्जियां, छिलके वाली दाल, दूध और फल इत्यादि खाने चाहिए।
  •  यदि आपको कब्ज है तो उसका असर भी चेहरे और स्वास्थ्य दोनों पर पड़ता है। दरअसल पेट ही सभी बीमारियों की जड़ होता है। चेहरे पर निखार लाने और झुर्रियों की समस्या से निजात पाने के लिए कब्ज की समस्या से निजात पाना जरूरी है। त्वचा पर अधिक कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल करना भी त्वचा के लिए हानिकारक होता है। सस्ते मेकअप से भी झुर्रियों की समस्या पैदा हो जाती है इसीलिए अच्छी क्वालिटी के प्रोडक्ट का इस्तेमाल करना चाहिए।
  •  चेहरे को धोते समय कभी साबुन का प्रयोग न करें। साबुन में मौजूद कॉस्टिक सोडा हमारी त्वचा के रहे-सहे तेल को भी सोख लेता है, जिससे कम उम्र में ही हमारे चेहरे पर झुर्रियां नजर आने लगती हैं। सर्दियों में झुर्रियों से बचने के लिए खास मॉयश्चराइजर क्रीम इत्यादि का इस्तेमाल करना चाहिए।
  •  झुर्रियों से बचने के लिए प्रतिदिन 12 से 15 ग्लास पानी पीना लाभदायक है।
  •  अनानास को त्वचा पर लगाने से झुर्रियों से मुक्ति मिलती है, लेकिन रूखी त्वचा के लिए यह कारगर नहीं है। जैतून, बादाम या नारियल के तेल से चेहरे पर मसाज करने से भी झुर्रियां कम हो सकती हैं। इनमें पाए जाने वाला विटामिन-ई जहां मृत कोशिकाओं को नष्ट करता है वहीं त्वचा में निखार भी लाता है।
  •  हल्दी में गन्ने का रस मिलाकर पैक तैयार कर चेहरे पर लगाने से चेहरे पर निखार तो आता ही है साथ ही भविष्य में झुर्रियां होने की आशंका भी दूर हो जाती है। गाजर, ककड़ी या नींबू के रस को पैक के साथ मिला कर लगाना भी झुर्रियां दूर करने में लाभकारी है। अंडे का सफेद हिस्सा चेहरे पर लगाने से झुर्रियों से निजात मिलती है।
  • मेडिकल ट्रीटमेंट्स डॉ. नीतू सैनी के अनुसार विटामिन-ए से तैयार होने वाली रेटिनॉयड्स क्रीम रिंकल्स घटाने और एजिंग की समस्याओं का ट्रीटमेंट करने में सहायक हैं। ट्रेटीनायन युक्त क्रीम भी रेटिनायड हैं। इन लगाने वाली दवाओं से इन्फ्लेमेशन और ड्राइनेस की समस्या हो सकती है।
  •  ओवर-दि-काउंटर बिकने वाली रिंकल क्रीम जिनमें रेटिनॉल, अल्फा हाइड्रॉक्सिल एसिड्स (फ्रूट एसिड्स) और एन्टिऑक्सीडेंट्स हों उपयोग की जा सकती हैं हालांकि इनका असर मामूली होता है और रिंकल्स में बहुत हल्का सुधार देखा जा सकता है।

कॉस्मेटिक सर्जिकल ट्रीटमेंट्स :- 

  • दिल्ली की डर्मेटोलॉजिस्ट एवं कॉस्मो फिजिशियन डॉ. इंदु बालानी का कहना है, 'रेस्टिलेन जैसे नए जमाने के डर्मल फिलर्स इसी तरह के फोल्ड्स और नैसोबियल एवं मैरियोनेट लाइनों को भरने तथा उनका इलाज करने के लिए विशेष रूप से बनाए गए हैं। रेस्टिलेन एक प्रकार का हायलुरोनिक एसिड आधारित डर्मल फिलर है जिसे त्वचा की कोमलता बढ़ाने के लिए त्वचा के अंदर पिरोया जाता है और इससे बारीक रेखाएं एवं झुर्रियां साफ कर आप फिर से जवां दिख सकते हैं।
  • फिलर्स जैसे कि फैट, कोलाजन और हाइलुरोनिक एसिड को त्वचा में वहां इंजेक्ट किया जाता है, जहां रिंकल्स मौजूद हों। इससे वह हिस्सा फूल जाता है और त्वचा कम दिखने वाली लकीरों के साथ मुलायम और कसी हुई नजर आने लगती है।
  • द स्किन क्लिनिक, मुंबई की कंसल्टेंट डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. माधुरी अग्रवाल ने बताया, 'इन उपायों से जहां आपको जल्दी मुस्कान रेखाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा, वहीं बोटॉक्स आपकी आंखों के आसपास के क्रो फीट मिटाने में कारगर साबित होगा। प्रभावित क्षेत्रों में इस्तेमाल करने पर बोटॉक्स तनाव के कारण झुर्रियां पैदा करने वाली मांसपेशियों को राहत प्रदान करता है।
  • त्वचा विशेषज्ञ नीतू सैनी के अनुसार, 'बोटोक्स या बोटोलिनम टॉक्सिन को उन मसल्स में इंजेक्ट किया जाता है, जो त्वचा की सतह पर लकीरें पैदा करती हैं। बोटोक्स मसल्स को सुन्न कर देता है और उनको सिकुडऩे नहीं देता, जिससे त्वचा कम दिखने वाली लकीरों के साथ तनी हुई और मुलायम बनी रहती है। इसका असर कुछ महीनों तक तो रहता है लेकिन हमेशा नहीं रहता, ट्रीटमेंट को दोहराने की जरूरत होती है। 


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