क्या आपको पता है शिवलिंग का रहस्य और क्यों की जाती है इसकी पूजा?

पूरे भारत में बारह ज्योर्तिलिंग हैं जिसके विषय में मान्यता है कि इनकी उत्पत्ति स्वयं हुई. इनके अलावा देश के विभिन्न भागों में लोगों ने मंदिर बनाकर शिवलिंग को स्थापित किया है और उनकी पूजा करते हैं. लिंग को शिव का निराकार रूप माना जाता है, जबकि उनके साकार रूप में उन्हें भगवान शंकर मानकर पूजा जाता है. आदि काल से ही मनुष्य शिव के लिंग की पूजा करते आ रहे हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि सभी देवों में महादेव के लिंग की ही पूजा क्यों होती है. इस संदर्भ में अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं हैं.

शिवलिंग का रहस्य
शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि हमारे ब्रह्मांड की आकृति है और अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की भाषा में बोला जाए तो शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-अनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है! अर्थात शिवलिंग हमें बताता है कि इस संसार में न केवल पुरुष का और न ही केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है बल्कि, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों ही समान हैं.

वेदों में मिलता है उल्लेख
वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है. यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है. मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु. वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं. इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है.

शिव पुराण के अनुसार
शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा के विषय में जो तथ्य मिलता है वह तथ्य इस कथा से अलग है. शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है. इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं. इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है. भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग प्रकट किया था. इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ. इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई.

पौराणिक कथा के अनुसार
जब समुद्र मंथन के समय सभी देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया. उन्होंने बड़ी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ‘नीलकण्ठ’ कहलाए. समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ़ गया. उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई, जो आज भी चली आ रही है.

वैज्ञानिक कारण
हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो की खुदाई से पत्थर के बने लिंग और योनी मिले हैं. एक मूर्ति ऐसी मिली है जिसके गर्भ से पौधा निकलते हुए दिखाया गया. यह प्रमाण है कि आरंभिक सभ्यता के लोग प्रकृति के पूजक थे. वह मानते थे कि संसार की उत्पत्ति लिंग और योनी से हुई है. इसी से लिंग पूजा की परंपरा चल पड़ी.

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