सोने के लिए कौन सी हो सही दिशा



* भारत मे बहुत बड़े बड़े ऋषि हुये ! चरक ऋषि ,पतंजलि ऋषि ,शुश्रुत ऋषि ऐसे एक ऋषि हुए है 3000 साल पहले बाकभट्ट ऋषि ! उन्होने 135 साल के जीवन मे एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था अष्टांग हृद्यम उसमे उन्होने ने मानव शरीर के लिए सैंकड़ों सूत्र लिखे थे शास्त्रों, वास्तु तथा विज्ञान के दृष्टिकोण भी इस बात को उजागर करते हैं।

* बाग्भट्टजी एक जगह लिख रहे है ! कि जब भी आप आराम करे मतलब सुबह या शाम या रात को सोये तो हमेशा दिशाओ का ध्यान रख कर सोये lअब यहाँ पे वास्तु विज्ञान ही हैl
* तो वो कहते है हमेशा आराम करते समय सोते समय आपका सिर सूर्य की दिशा मे रहे ! सूर्य की दिशा मतलब पूर्व और पैर हमेशा पश्चिम की तरफ रहे !और वो कहते कोई मजबूरी आ जाए कोई भी मजबूरी के कारण आप सिर पूर्व की और नहीं कर सकते तो दक्षिण (south)मे जरूर कर ले| तो या तो पूर्व ( east) या दक्षिण (south) | जब भी आराम करे तो सिर हमेशा पूर्व मे ही रहे| पैर हमेशा पश्चिम मे रहे और कोई मजबूरी हो तो दूसरी दिशा है दक्षिण | दक्षिण मे सिर रखे उत्तर दिशा मे पैर |
* आगे के सूत्र मे बागभट्ट जी कहते है उत्तर मे सिर करके कभी न सोये | फिर आगे के सूत्र मे लिखते है उत्तर की दिशा म्रत्यु की दिशा है सोने के लिए | उत्तर की दिशा दूसरे और कामो के लिए बहुत अच्छी है पढ़ना है लिखना है अभ्यास करना है ! उत्तर दिशा मे करे ! लेकिन सोने के लिए उत्तर दिशा बिलकुल निषिद्ध है|

* सिर दक्षिण या पूर्व की ओर रखकर सोने से होता है शरीर व मन पर अनुकूल प्रभाव, हमारे सोने की दिशा भी शरीर व मन पर शारीरिक व मानसिक, अनुकूल व प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

* सोते समय दक्षिण या पूर्व की ओर सिर करके ही सोना चाहिए। अन्धविश्वास कह कर इस बात को नकारा नहीं जा सकता।

* जब किसी की मत्यु होती है पंडित जी खड़े होकर संस्कार के लिए संस्कार के सूत्र बोलते है वो शुरू करते हैं| तो पहला ही सूत्र वो बोलते हैं ! मृत का शरीर उत्तर मे करो मतलब सिर उत्तर मे करो | पहला ही मंत्र बोलेंगे मृत व्यक्ति का सिर उत्तर मे करो | और हमारे देश मे आर्य समाज के संस्थापक रहे दयानंद सरस्वती जी | भारत मे जो संस्कार होते है | जन्म का संस्कार है, गर्भधारण का एक संस्कार है ऐसे ही मृत्यु भी एक संस्कार (अंतिम संस्कार) है तो उन्होने एक पुस्तक लिखी है (संस्कार विधि) ! तो उसमे अंतिम संस्कार की विधि मे पहला ही सूत्र है ! मृत का शरीर उत्तर मे करो फिर विधि शुरू करो !

* वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी दोनों ध्रुवों में चुम्बकीय प्रवाह विद्यमान है। उत्तर दिशा की ओर धनात्मक प्रवाह है और दक्षिण दिशा की ओर ऋणात्मक प्रवाह। हमारा सिर का स्थान धनात्मक प्रवाह वाला और पैर का स्थान ऋणात्मक प्रवाह वाला है। यह दिशा बताने वाले चुम्बक के समान है। धनात्मक या ऋणात्मक प्रवाह आपस में मिल नहीं सकते। इसको चुंबक के प्रयोग से भी देखा जा सकता है। दक्षिण से दक्षिण या उत्तर से उत्तर के सिरे को मिलाने पर ये एक दूसरे को धकेेलते हैं जबकि दक्षिण से उत्तर को मिलाने पर आपस में चिपकते हैं। इस लिए दक्षिण की ओर सिर न रख कर पैरों को रखकर सोया जाए तो शारीरिक ऊर्जा का क्षय हो जाता है और वह जब सुबह उठा जाता है तो थकान महसूस होती है, जबकि दक्षिण में सिर रखकर सोने से अच्छे प्रभाव सामने आते हैं, क्योंकि सिर में धनात्मक ऊर्जा का प्रवाह है जबकि पैरों से ऋणात्मक ऊर्जा का निकास होता रहता है।

* आपका जो शरीर है उसका जो सिर वाला भाग है वो है उत्तर ! और पैर वो है दक्षिण | अब मान लो आप उत्तर कि तरफ सिर करके सो गए| अब पृथ्वी का उत्तर और सिर का उत्तर दोनों साथ मे आयें तो काम करता है ये प्रतिकर्षण बल.. विज्ञान ये कहता है ..प्रतिकर्षण बल लगेगा ! तो आप समझो उत्तर मे जैसे ही आप सिर रखोगे प्रतिकर्षण बल काम करेगा धक्का देने वाला बल तो आपके शरीर मे संकुचन आएगा l शरीर मे अगर संकुचन आया तो रक्त का प्रवाह पूरी तरह से कंट्रोल के बाहर जाएगा !क्यूँ की शरीर को प्रेशर आया तो खून को भी प्रेशर आएगा| तो अगर खून को प्रेशर है तो नींद आएगी ही नहीं| मन मे हमेशा चंचलता रहेगी|दिल की गति हमेशा तेज रहेगी, तो उत्तर की दिशा पृथ्वी की है जो उत्तरी ध्रुव कहलाती है| और हमारे शरीर का उत्तर ये है सिर, अगर दोनों एक तरफ है तो प्रतिकर्षण बल काम करेगा नींद आएगी ही नहीं... !

* सुबह उठने के बाद भी लगता है कि अभी थोड़ा और सो लें। इसी तरह पूर्व दिशा में पैर रखकर सोते हैं तो जहां शास्त्रों के अनुसार अनुचित और अशुभ माने जाते हैं। वहीं पूर्व में सूर्य की ऊर्जा का प्रवाह होता है और पूर्व में देव-देवताओं का निवास स्थान भी माना गया है।

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