ग्राविओला जिसे हिंदी में रामफल कहते है, ज्यादातर अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया के बरसाती जंगलो में पाया जाता है. कुछ साल पहले जब इसके बारे में नए रिसर्च किये गए तो पता चला की इसके रस में ऐसे तत्व होते हैं जो केंसर का इलाज करने में काम आ सकता है. यह तत्व यकृत और स्तन केंसर के कीटारुओं को मारने की चमता रखते हैं यह शरीफे की तरह दिखने वाला फल भारत के कई इलाको में भी मिलता है जैसे हैदराबाद जो तेलंगाना की राजधानी है यहाँ की भाषा तेलगु में भी इसे रामफल ही कहते है. यह रामफल सचमुच केंसल को मारने की चमता रखता है.
रामफल एक मध्यम श्रेणी का वृक्ष होता है। इसका तना अधिक मोटा नहीं होता। यह पर्याप्त काष्ठीय एवं भूरे वर्ण का होता है। इसकी शाखायें भी पतली एवं भूरे वर्ण की होती है। शाखाओ पर सीताफल की पतियों की भांति पते लगे होते है। रामफल का बाहरी आवरण चिकना होता है, बेल की तरह। बाकी पेड़, पत्ता और फल के अंदर का बीज लगभग एक जैसा होता है। पतों पर विन्यास आम की पतियों के समान होता है। पत्तियां सलंग किनारे वाली होती है। इसके पुष्प छोटे हरे-सफ़ेद तथा फल आलू के समान वर्ण वाले और गूदेदार होते है। इसका गुदा खट्टा मीठा और कषैला होता है। जब यह वृक्ष अपना पर्याप्त आकार ले लेता है, तब इसका छत्रक काफी सुन्दर दिखाई देता है और वृक्ष के नीचे काफी शीतलता रहती है। बहुत सारी विदेशी अध्ययनों से ये बात साबित हुयी है के रामफल जिसको ग्राविओला या एनोना रेटिकोलाटा भी कहा जाता है, यह कैंसर के मरीजों के लिए वरदान है.
समर्थकों का दावा है कि यह आम कीमोथेरेपी दवाओं की तुलना में पेट के कैंसर की कोशिकाओं को मारने में अधिक प्रभावी है, यह प्रोस्टेट, फेफड़े, स्तन, पेट और अग्नाशय के कैंसर को नष्ट तो करता ही है मगर यह स्वस्थ कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। इस प्रकार से यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देता है।
The National Cancer Institute ने इस पौधे के पत्तों और स्टेमस (STEMS) का निरिक्षण किया, जिसमे उन्होंने पाया के यह पौधा कैंसर की घातक कोशिकाओं को नष्ट करने में बहुत सहायक है. मगर आश्चर्य इस बात का है के इस रिपोर्ट को कभी सार्वजानिक नहीं किया गया. और यह रिपोर्ट National Cancer Institute (NCI) की आंतरिक रिपोर्ट बन कर रह गयी.
सन 1976 से ही ग्राविओला या रामफल पर अनेक अधिकारिक अध्ययन होने शुरू हो गए थे. ग्राविओला पर अनेकों शोध हुए, और उनमे यही पाया गया के यह पेड़ अनेकों प्रकार के कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने में बहुत बहुत सहायक है.
रामफल रक्त और वीर्य शोधन से कैंसर तक लाभकारी
रामफल के फायदे :
रामफल एक मध्य म श्रेणी का वृक्ष होता है। इसका तना अधिक मोटा नहीं होता। यह पर्याप्त काष्ठीय एवं भूरे वर्ण का होता है। इसकी शाखायें भी पतली एवं भूरे वर्ण की होती है। शाखाओ पर सीताफल की पतियों की भांति पते लगे होते है। रामफल का बाहरी आवरण चिकना होता है, बेल की तरह। बाकी पेड़, पत्ता और फल के अंदर का बीज लगभग एक जैसा होता है। पतों पर विन्यास आम की पतियों के समान होता है। पत्तियां सलंग किनारे वाली होती है। इसके पुष्प छोटे हरे-सफ़ेद तथा फल आलू के समान वर्ण वाले और गूदेदार होते है। इसका गुदा खट्टा मीठा और कषैला होता है। जब यह वृक्ष अपना पर्याप्त आकार ले लेता है, तब इसका छत्रक काफी सुन्दर दिखाई देता है और वृक्ष के नीचे काफी शीतलता रहती है।
रामफल खून के दोषों को दूर करने वाला, कफ-वात का बढ़ाने वाला, जलनकारी, प्यास लगाने वाला, पित्त को कम करने वाला और संकोचक है। रामफल के फल का रस भारी तथा कीटाणु को मारने वाला है। अतिसार रोग तथा पेचिश के रोग में इसके रस को पिलाने से बहुत लाभ मिलता है। इसके फल को खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। रामफल की जड़ को अपस्मार (मिर्गी) से पीड़ित व्यक्ति को सुंघाने पर रोगी के मिर्गी का दौड़ा पड़ना रुक जाता है। रामफल की छाल एक प्रभावशाली संकोचक (सिकुड़न वाले) पदार्थ होते हैं।
विभिन्न भाषाओँ में इसके नाम :
हिंदी गुजराती मराठी पंजाबी – रामफल
संस्कृत – रामफलम्, अग्रिमा, कृष्णबीजम
असमी – अतलास।
बांग्ला – नोना।
कन्नड़ – रामफला
कोंकण – अनोन
मलयालम – अथा
उड़िया – नेउआ बधियाला
तमिल तेलुगु – राम सीता
अंग्रेजी – bullocks heart
लेटिन – annona reticulata
आइये जाने रामफल के औषधीय महत्त्व :
रक्तशोधन में :
रक्त विकार से शरीर में अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। फोड़े फुंसी आदि की समस्या भी इसी कारण से हो सकती है। इससे मुक्ति पानी के लिए रक्तशोधन की आवश्यकता होती है। नित्य रामफल का सेवन रक्त का उत्तम शोधन करता है। नित्य एक रामफल का सेवन करने वाला अपने आपको काफी स्फूर्तिदायक अनुभव करता है। इसका मिश्री मिलाकर शरबत भी बनाया जा सकता है।
आमतिसार में :
रामफल को एक मिक्सर में टुकड़े करके डाल दें तथा भली प्रकार उसका जूस बना लें। इस जूस को २ से ३ दिन तक पीने से आमतिसार रोग में लाभ होता है।
पेट के कृमि मारने में :
पेट में कीड़े होने से खाया पिया शरीर को लगता नहीं। और बेचैनी का भी अनुभव होता है। बच्चे पेट के कीड़ों के कारण से अधिक परेशान होते हैं। इस समस्या के उपचारार्थ रामफल को काले नमक के साथ खाना लाभदायक होता है। इस हेतु रामफल के छोटे छोटे टुकड़े कर उन पर काले नमक को बुरक दें तथा रूचि अनुसार ग्रहण करें। इससे पेट के कीड़े मर कर मल द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
पौष्टिकता और वीर्य वृद्धि हेतु :
रामफल खाकर ऊपर से मिश्री मिला हुआ एवं औटाया हुआ दूध पीना हितकर होता है। इस प्रयोग से जहाँ एक और पौष्टिकता में वृद्धि होती है, वहीँ दूसरी और वीर्य भी पुष्ट होता है।
शुक्र स्तम्भन हेतु :
रामफल की परिपक्व (पूर्ण रूप से पकी हुयी) छाल का चूर्ण लगभग एक माशा मिश्री के साथ लेने से शुक्र स्तम्भन होता है। इस प्रयोग से लिंगोथान में भी धनात्मक परिणाम मिलते हैं।
कैंसर में :
अनेक विदेशी अध्ययनों में यह साबित हुआ है के रामफल कैंसर से लड़ने में बहुत ही प्रभावशाली है. कुछ अध्ययन तो इसको कैंसर से 10000 गुणा अधिक प्रभावशाली मानते हैं. [इसके लिए आप हमारा यह लेख यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं.]