कुटज: इस पेड़ की छाल और बीज दोनों को इन्द्रजौ कहते हैं जिनका आयुर्वेद में काफी महत्त्व है। डायरिया होने पर इसकी छाल का काढ़ा फायदेमंद है। इसके लिए इसकी थोड़ी छाल को एक गिलास पानी में एक चौथाई होने तक उबालें। पानी को छानकर भोजन करने के बाद पीना लाभदायक है। अन्य फायदे दस्त के अलावा मौसमी बुखार में इसका रस और चूर्ण आराम पहुंचाता है।
नीम: त्वचा पर होने वाले फोड़े-फुंसी, दाद, खुजली आदि में इसकी छाल प्रयोग में लेते हैं। इसके लिए इसे पानी में घिसकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। भोजन से पहले रोज 1-1 चम्मच चूर्ण लेने से डायबिटीज नियंत्रित रहती है। इसके लिए पनीर के डोडे (एक प्रकार का फल), कुटकी, चिरायता, नीम की छाल व गिलोय के पत्तों को समान मात्रा में लेकर पाउडर बना लें। अन्य फायदे नीम के पत्तों को पानी में उबाल लें। गुनगुने या पानी को ठंडा कर नहाने से संक्रमण का खतरा नहीं रहता।
मैदा लकड़ी: इसकी छाल व गोंद काम में लिए जाते हैं। हड्डी टूटने वाला दर्द, चोट, मोच, जोड़दर्द, सूजन, गठिया, सायटिका और कमरदर्द में इसकी छाल के पाउडर को प्रयोग में लेते हैं। इसके अलावा चोट, मोच या हड्डी के दर्द व सूजन की स्थिति में मैदा लकड़ी व आमा हल्दी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 1-1 चम्मच दूध से 10 दिन तक लेना फायदेमंद है।
बबूल (कीकर) : त्वचा के जलने पर छाल के बारीक पाउडर को थोड़े नारियल तेल में मिलाकर जले हुए स्थान पर लगाएं। इससे जलन दूर होने के साथ निशान भी नहीं पड़ेगा। अन्य फायदे छाल के पाउडर को पानी में उबालकर गरारे करने से मुंह के छाले ठीक हो सकते हैं।
वटवृक्ष (बरगद) : मुंह में छाले, जलन, मसूढ़ों में जलन व सूजन में इसकी छाल के चूर्ण की 2-5 ग्राम की मात्रा रोजाना सुबह-शाम पानी से लें। एक माह तक ऐसा करें, लाभ होगा। अन्य फायदे मधुमेह रोगी में यह शुगर लेवल को सामान्य रखता है।
अशोक त्वचा: के फोड़े-फुंसी को दूर करने के लिए इसकी छाल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर लें। इसमें थोड़ा सरसों तेल मिलाकर लगाने से जल्दी असर होता है। अन्य फायदे महिला संबंधी दिक्कतों में चूर्ण में मिश्री मिलाकर गाय के दूध से 1-1 चम्मच लें।