आयुर्वेद से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि चने में प्रोटीन की मात्रा अधिक होने के कारण यह लीवर के लिए काफी लाभदायक माना जाता है। चने से सत्तू बनने के बाद उसका गुण भी बदल जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सत्तू गैस्ट्रोइंट्रोटाइटिस से पीड़ति व्यक्ति के लिए काफी कारगर होता है। आधुनिक दिनचर्या में तो इस बीमारी से लगभग 90 प्रतिशत लोग पीड़ीत हैं। सत्तू आहार है, औषधि नहीं, इसीलिए इसका साइड इफेक्ट भी नहीं होता।
1. जौ और चने के मिश्रण से बने सत्तू को पीने से मधुमेह रोग दूर करने में मदद मिलती है। इसे पानी में घोल कर पीने से यह तुरंत पचने के बाद ऊर्जा व शक्ति देता है।
2. यह कफ, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। डॉक्टरों की मानें तो यह पेट के रोगों के लिए भी रामबाण है।
3. चने का सत्तू गरमी में पेट की बीमारी और तापमान को नियंत्रित रखने में मदद करता है।
4. अल्पाहार में सत्तू का प्राचीन काल से मुख्य स्थान रहा है। यह शरीर के पोषण के साथ-साथ मोटापा भी नियंत्रित रखता है। मौजूदा समय में सत्तू की उपयोगिता भले ही महत्वपूर्ण हो, लेकिन इसके चाहने वाले कम होते जा रहे हैं।
5. फास्ट फूड के दौर में सत्तू का महत्व कम हो रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण इलाकों में गर्मियों में लोग सत्तू का इस्तेमाल खूब करते हैं।