अगर आपको बार बार बेहोशी की समस्या है तो अपनाये यह उपाय.


इस रोग में व्यक्ति को बेहोशी छा जाती है| वह निष्प्राण-सा पड़ा रहता है| ऐसे समय में रोगी को किसी आरामदायक एवं सुरक्षित स्थान पर लिटाना चाहिए| उसके चारों ओर भीड़ नहीं लगनी चाहिए| रोगी के वस्त्रों को ढीला करके चित लिटाकर पंखे की हवा देनी चाहिए| चेहरे पर बार-बार ठंडे पानी के छींटे मारें|

कारण :

मनुष्य दिनभर कोई न कोई कार्य अवश्य करता रहता है| इन कार्यों को सम्पन्न करने से उसे जोखिम भी उठाना पड़ता है| जोखिम के कार्यों में प्राय: चोट-फोट का डर रहता है| अत: जब कभी चोट-फोट के कारण संवेदनशीलता में किसी प्रकार की कमी आ जाती है तो उस दशा को बेहोशी (मूर्च्छा) कहा जाता है| कई बार गम्भीर बीमारी, गरमी की अधिकता या मर्म स्थान में चोट लग जाने के कारण भी बेहोशी आ जाती है|

पहचान :

यदि रोगी पूरी तरह से बेहोश हो जाता है तो उसे अपने तन-बदन का होश नहीं रहता| लेकिन यदि आधी बेहोशी होती है तो इधर-उधर देखकर वह कुछ कहने के लिए बार-बार उठता है या इशारे करता है| वैसे आमतौर पर बेहोशी या अर्द्धबेहोशी की हालत में रोगी कोई हरकत नहीं करता|
बेहोशी की दशा में रोगी की नाड़ी तथा श्वास की गति ठीक बनी रहती है| लेकिन कई बार देखा गया है कि रोगी का शरीर कांपता रहता है| वह हाथ-पैर भी पटकता है क्योंकि उसके शरीर में दर्द भरी हड़कन होती है| उसके मुख से लार भी गिरती है| रोगी गहरी नींद में सो जाता है| उसकी याददाश्त कम हो जाती है| कभी-कभी बेहोशी की हालत में उसका मूत्र निकल जाता है|

नुस्खे :

  • सबसे पहले कार्य तो यही है कि बेहोश हो जाने पर रोगी के मुख पर ठंडे पानी के छींटे बार-बार दें| ऐसा करने से रोगी को होश आ जाता है|होश आने पर रोगी को शुद्ध शहद चटाना चाहिए| इससे दोबारा बेहोश होने का भय जाता रहता है|
  • तुलसी के पत्तों को पीसकर उसमें जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर रोगी की नाम में बार-बार डालें|होश आने के बाद रोगी को थोड़ी-सी अजवायन पानी के साथ दें|
  • यदि गरमी तथा अधिक मेहनत करने की वजह से बेहोशी आ गई हो तो रोगी को खीरे का रस देना चाहिए| माथे पर भी इस रस को मलते रहें|सिर तथा शरीर पर तुलसी का रस मलने से हर प्रकार की बेहोशी दूर हो जाती है|
  • अरहर की दाल को थोड़े से पानी में भिगोकर रख दें| कुछ देर बाद पानी को पिलाने से नशा तथा मूर्च्छा दोनों दूर हो जाते हैं|
  • पीपल के पेड़ की छाल को सुखाकर पीस लें| फिर उसे शहद के साथ मिलाकर दिन में दो-तीन बार चाटें|पीपल के फलों को सुखाकर जला लें| फिर उसका महीन चूर्ण बनाकर देशी घी में मिलाएं| इसे आंखों में काजल की तरह नित्य रात को सोते समय लगाएं| बेहोशी रोकने के लिए यह काजल बहुत कारगर सिद्ध हुआ है|
  • प्याज का रस सुंघाएं तथा मुंह में बूंद-बूंदकर डालें|पुदीना सुंघाने से भी बेहोशी दूर हो जाती है|
  • कालीमिर्च को पीसकर महीन चूर्ण कर लें| फिर इस चूर्ण को नाक में रत्तीभर की मात्रा में डालें| रोगी को होश आ जाएगा|
  • लोबान की धूनी कुछ देर नाक में देने से रोगी की बेहोशी टूट जाती है|एक चम्मच आंवले का रस देशी घी में मिलाकर पिलाने से रोगी को काफी लाभ होता है|
  • बेर का गूदा, कालीमिर्च, खस तथा नागकेसर - सबको 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस डालें| फिर पानी से शरबत बनाकर रोगी कू पिलाएं|

क्या खाएं क्या नहीं :

रोगी की बेहोशी दूर होने के बाद उसे हरेक पदार्थ खाने को दिया जा सकता है - जैसे दही, रबड़ी, घी, अंडा, चावल की खीर आदि| इसके अलावा नीबू का शरबत पिलाते रहें क्योंकि यह स्नायुमंडल के लिए बहुत लाभदायक है| परन्तु गुड़, खटाई, इमली, चटपटी तथा मसालेदार चीजें, तेल, डालडा घी, मट्ठा, खट्टे फल, कब्ज करने वाला भोजन, चाय, कॉफी, शराब, बीड़ी-सिगरेट, भांग, गांजा, कोकाकोला, चुइंगम आदि के सेवन से उसे दूर रखें|

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